” संगीनी”
डॉ लक्ष्मण झा “परिमल ”
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कोई गीत कभी गुनगुनाता है ,
कोई विचलित मन सहलाता है !
कोई गीत कभी गुनगुनाता है,
कोई विचलित मन सहलाता है !
स्नेहो की छाया में हरदम ,
आँचल से पवन बहाता है…….
कोई गीत ….. !
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हम शायद कितने व्यस्त रहे,
बोझिलता से क्यूँ ना त्रस्त रहें !
फिर धीमे से पवन का झोंका ,
मेरे मन बगिया को हिलाता है !!
कोई गीत……………… !
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जाने वह अद्भुत रूप तेरा ,
मेरे पीछे -पीछे चलता है !
हम कितने भी हों दूर सही ,
वह मेरे संग -संग रहता है !!
कोई गीत कभी गुनगुनाता है ,
कोई विचलित मन सहलाता है !
स्नेहो की छाया में हरदम ,
आँचल से पवन बहाता है !!
कोई गीत……………… !
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डॉ लक्ष्मण झा”परिमल ‘
दुमका