श्री राम का कोप
मित्रों मत सवैया छंद पर एक प्रयास समर्पित है आप सब सुधि जनों को प्रणाम करता हूँ।अगर कोई त्रुटि हो तो क्षमा प्रार्थी हूँ। समर्पित है ।
” श्री राम का कोप”
श्री राम रुष्ट हो बोले जब,
सागर तू ठहर बताता हूँ।
पल भर में ही इस सागर को,
अब बूंद बूंद तरसाता हूँ।
अंडज, जलचर सब विकल हुये,
जब धनुष बाण संधान किया।
तट पर तब प्रकटा आ सागर ,
नत शीश हुआ गुणगान किया।
था अर्थ ना कोई विनती का,
अभिमानी तुझे बताता हूँ।
पल भर में ही इस सागर को,
अब बूंद बूंद तरसाता हूँ।
जब क्षमा राम से मांग चुका,
नल नील श्रेष्ठ को काम दिया।
तब हुये प्रफुल्लित अनुज श्रेष्ठ,
नत सागर ने विश्राम लिया ।
जड़ता की इस परिभाषा को ,
अब देख तुझे समझाता हूँ।
पल भर में ही इस सागर को,
अब बूंद बूंद तरसाता हूँ।
श्रीराम रुष्ट हो बोले जब,
सागर तू ठहर बताता हूँ।
पल भर में ही इस सागर को,
अब बूंद-बूंद तरसाता हूं।
डॉ प्रवीण कुमार श्रीवास्तव” प्रेम “