श्राद्ध क्यों ?
जीते जी यदि रखते होते
माता – पिता में श्रद्धा तुम।
तो न दिखाई देते होते,
जगह-जगह पर वृद्धाश्रम।
बाद मृत्यु के जागी आस्था,
कर रहे तर्पण, कर रहे श्राद्ध।
जिन्दा जिनकी सुध न ली कभी,
अब क्यों आई उनकी याद ?
डरते हो क्या यही सोच कर,
इक दिन अपने साथ यही होगा।
जैसी करनी वैसी भरनी है भाई,
जैसा किया फल भी वही भोगा।
—रंजना माथुर दिनांक 13/09/2017
मेरी स्व रचित व मौलिक रचना
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