श्रम बनाम भ्रम
न वीर समझ ना कायर खुद को,
बस नाप – तौल हर पल खुद को,
अभिमान न, तनिक भी हो जाए
पथ से न पथिक तू भटक जाए।
मत भूल कि जीवन है नश्वर,
पल भर को भी तू न व्यर्थ कर ।
जो मांग मांग कर खाते हैं ,
कीड़े बनकर मर जाते हैं ।
श्रमरत रहना ही, है तप बड़ा,
इस बात को तू ना भूल जरा ।
काया मिली, शक्ति मिला ,
जा चीर पहाड़ रास्ता बना।
तीनों लोकों का वैभव तुझ में,
बाहर क्या खोजे जग में ,
क्यों समझे खुद को तुच्छ बड़ा,
अपमानित और दम्य सा ,
सत्य का संकल्प ले
ना कोई और विकल्प ले।
श्रम में है, वह तेज ऐसा ,
पत्थर में भी खिला दे फूल नया।
नतमस्तक होकर हर पल,
क्यों अपनी बाहें पसारता
क्या अपने भुजबल पर संदेह तुझे?
जो दर-दर भीख मांगता।
है स्वर्ग नरक का चक्र नहीं
सारा हिसाब यही होगा,
अपने कुकृत्यों का फल,
तू भोग कर ही जायेगा ।
कर्म होंगे जितने उज्जवल
जीवन होगा उतना निर्मल।
भ्रम से अब बाहर निकल ,
जा श्रम में खुद को लीन कर।
…ज्योति ✍️