” श्रधेय अटल जी “
मेरी लेखनी से ” श्रधेय अटल जी ” के लिए…???
” सूरज को दीया दिखा सकूँ
ऐसे नही हम हैं ,
आपको अपनी लेखनी में ढालूँ
मेरी लेखनी में कहाँ दम है , ”
” श्रधेय अटल जी ”
नेता किसने कह दिया
मैं जनता की सोच हूँ ,
जनता मेरी मैं जनता का
मैं जनता की ओज हूँ ,
मैं जिंदा हूँ और रहूँगा
सबके दिल – ओ – दिमाग में फिरूँगा ,
तुम जियोगे मुझमें
मैं जिऊँगा तुम सबमें ,
मैं सबके दिल में रहता हूँ
मैं कैसे मर सकता हूँ ,
मेरी सोच को अमल करो
खुद से इसकी पहल करो ,
शरीर चला जाए तो क्या
आत्मा यहीं रहा करती ,
व्यक्ति मरते जीते हैं
सोच नही मरा करती ।।।
स्वरचित एवं मौलिक
( ममता सिंह देवा , 16 – 08 – 2018 )