*श्रग्विणी/ श्रृंगारिणी/लक्ष्मीधरा/कामिनी मोहन* — (द्वादशाक
श्रग्विणी/ श्रृंगारिणी/लक्ष्मीधरा/कामिनी मोहन — (द्वादशाक्षरावृत्ति)
गणावली — रररर
अंकावली– $|$-$|$-$|$-$|$ पदांत–$|$
हे भवानी हरो द्वेष की भावना। ज्ञान से प्रोत हो सिद्ध हो कामना।
भाव में ईष्ट हो प्रेरणा भी मिले। आत्मबोधी बनें पुष्प सा ही खिले।।
नित्य चेष्टा प्रमोदी रहें सर्वदा। दिव्य प्रार्थी प्रणी चंडिका हों सदा।
दूरदर्शी करो प्रेम का श्री भरो। लक्षणा शक्ति से लक्ष्य सारे वरो।।
उज्ज्वला शीतला मातु हे भारती। योगिनी गा रही नित्य ही आरती।
भूमिजा भामिनी जानकी उर्मिला। मांडवी कीर्तिका देवकी निश्चला।।
दूर दुर्बुद्धि हो आत्म की शुद्धि हो। शस्त्र संधान हो मंत्र की सिद्धि हो।
सत्य आनंद दे मुक्ति हो बंध से। जिंदगी ये कटे प्रेम सौगंध से।।
हो महानंद आशीष से वंदिता। हो महारंभ आनंद उत्कंठिता।
सिद्ध तेजस्विनी श्रावणी दुर्गमा। पार्वती मंगला शैलजा हे रमा।।
ज्ञान भंडार देना हमें माधवी। भैरवी रागिनी ताल दे तांडवी।
दो महाकाव्य की पावनी तूलिका। छंद की दे सकूँ दिव्य मैं मूलिका।।
—– डॉ रामनाथ साहू ” ननकी “
बिलासा छंद महालय