श्रंगार
राधा बरसाने की कुंज गलियों में कान्हा के प्रेम रस में हो गई मतवारी।
कान्हा की बांसुरी की प्रेम धुन पर राधा सुध बुध खो कर हो गई बाबरी।
नंदन वन की हर कली खिलकर महक रही हो गई सारे ब्रज की हवा मस्तानी।
कान्हा राधा के प्रेम रस पर धरा भी हो गई मुग्ध प्रकृति भी झूम झूम हुई दीवानी।
विपिन