शोहरत और बंदर
शोहरत एक तमाशा है
एक बंदर है
जो दूल्हा
बनकर नाचता है..
शीशे को देख इठलाता है..
मदारी डमरू बजाता है
बच्चे पैसा फेंकते है..
तमाशा खत्म, खेल खत्म
बंदर बंदर रहता है
वह न दूल्हा होता है
न गुणवान न रूपवान
सिर्फ कुछ पल का.
सिर्फ.कुछ पल का
मुगालता होता है..
वह जग का दूल्हा है
बंदरिया उसकी है..
मदारी उसकी गा रहा है
डमरू बजा रहा है..
*सूर्यकान्त