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3 Apr 2024 · 1 min read

शून्य ही सत्य

बड़ा बेचैन है बड़ा उदास सा खड़ा वो इंसान,
लड़कर जिंदगी से जुटा रहा जीने का सामान।
रहा सोच बनाऊं खुद को समाज में मैं ऊंचा,
पाकर चंद सिक्के ज्यादा कर रहा अभिमान।

अटहास कर रहा है समय उसकी हर बात पर,
ठहरा कुछ नही किसी का मेरे ढलते अंदाज पर ।
आकर फिर वहीं पड़ा है इंसान लेकर के गुरुर,
तन की राख कह रही शून्य में छिपा है हर नूर।

कंचन वर्मा
शाहजहांपुर
उत्तर प्रदेश

103 Views
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