शुभ प्रभात
शुभ प्रभात
शुभ प्रभात मित्र जी सदा प्रसन्न होइए।
दिन सदा सुखांत हो उमंग बीज बोइए।
मिले अनंत स्नेह भाव शुभ्र कर्म कीजिए।
सहर्ष मित्रता चले सदैव घाव धोइए।
भव्य उर विशाल हो न संकुचन रहे कहीं।
विराट दिव्य बुद्धि हो असंतुलन कहीं नहीं।
संपदा विभूतियां रहें सप्रेम संग में।
परार्थ भावना खिले असीम अंग-अंग में।
साहित्यकार डॉ0 रामबली मिश्र वाराणसी।