** शुकुं-ए-जिंदगी **
शुकुं-ए-जिंदगी मिले तो कैसे
बो दिये है बीज जो अब ऐसे
बोएं बबूल और चाहे आम
ये काम हो तो अब कैसे
जो बो दिया है जिंदगी में
जो खो दिया है जिंदगी में
पाये तो फिर कैसे जिंदगी में
ख़ुद-ख़ुदा-वंदना करें अब कैसे
मिले तो कैसे मिले शुकुं अब
ज़हर जो घोल रहे जिंदगी में
अब ऐसे बोल बोल रहे हैं
डोल डोल रहे हैं जिंदगी में
मय को बना लिया आसरा
अब बेआसरा ग़में जिंदगी में
जीये तो कैसे जिये जिंदगी में
बेवफ़ा को बावफ़ा बनाये कैसे
बो दिये हैं बीज जो अब ऐसे
शुकुं-ए-जिंदगी मिले तो कैसे ।।
?मधुप बैरागी