शीशे से पत्थर को तोड़ रहे होंगे
रीति, रिवाजें, रस्में छोड़ रहे होंगे
पूरब-पश्चिम बाँध के जोड़ रहें होंगे
काट रहे होंगे हिमखण्डों का सीना
नदियों की धाराएँ मोड़ रहे होंगे
अनसुलझी जीवन की अजब पहेली में
बैठे – बैठे माथा फोड़ रहे होंगे
दुनियादारी के चक्कर को त्याग चले
खुद ही खुद के पीछे दौड़ रहे होंगे
ये पागल, सिरफिरे,जुनूनी बैठ कहीं
शीशे से पत्थर को तोड़ रहे होंगे