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4 Sep 2023 · 2 min read

शीर्षक “सद्भाव ” (विस्तृत-आलेख)

सद्भाव को किसी भारतीय समाज में अन्य लोगों पर उनके राष्ट्रीय मूल, वजन, वैवाहिक स्थिति, जातीयता, रंग की परवाह किए बिना प्यार, विश्वास, प्रशंसा, शांति, सद्भाव, सम्मान, उदारता और इक्विटी को महत्व देने, व्यक्त करने और बढ़ावा देने की प्रक्रिया के रूप में लिंग,जाति, आयु और व्यवसाय आदि अन्य पहलुओं के बीच परिभाषित किया गया है।

इसलिए सद्भाव वास्तव में सामाजिक होने के लिए काफी आवश्यक है क्योंकि सामाजिक होने का अर्थ एक दूसरे के साथ सद्भाव की भावना के साथ रहना भी है। इस प्रयोजन के लिए हमें समाज में कार्यरत विभिन्न संस्थाओं और उनके बीच मौजूद सामाजिक संबंधों को मजबूत बनाने की बेहद आवश्यकता है। ये संस्थान अनेक हो सकते हैं। मोटे तौर पर हम उन्हें इस प्रकार वर्गीकृत कर सकते हैं:-

1) परिवार: परिवार वह स्थान है जहाँ व्यक्ति जन्म लेता है और उसका पालन-पोषण होता है। उनके मूल्य काफी हद तक उनके पारिवारिक वातावरण और उनके परिवार के सदस्यों विशेषकर माता-पिता से प्राप्त संस्कारों की प्राथमिकताओं से आकार लेते हैं।

2) राष्ट्र और सरकार: राष्ट्र वह देश है जहाँ एक व्यक्ति रहता है या नौकरी करता है आदि। राष्ट्रीय मान्यताएँ और मूल्य अपने राष्ट्र के लिए और अन्य राष्ट्रों के लिए सामाजिक सद्भाव को प्रभावित करते हैं। सरकार का कार्य नागरिक शांति, न्याय, समानता और स्वतंत्रता सुनिश्चित करने के लिए बल प्रयोग करना है। इसलिए सामाजिक सद्भाव को बढ़ावा देने के लिए एक सरकार को ईमानदार, वैध, लोकतांत्रिक और जवाबदेह होना चाहिए।

3) संगठन: व्यक्ति या तो एक व्यापारी, एक सैनिक या एक गैर-लाभकारी व्यवसाय में कार्यान्वित हो सकता है। जो भी हो, दूसरों के साथ अच्छे संबंध रखने की उनकी अवधारणा काफी हद तक उनकी कार्य संस्कृति और सहयोगियों से प्रभावित होती है और साथ ही सामूहिक रूप से कार्य करते हुए कम समय में अधिक कार्य पूर्ण होकर संगठन लाभान्वित भी होता है|

4) समुदाय और आस-पड़ोस: ‘एक व्यक्ति को किसी के साथ रखने से जाना जाता है’ एक आम कहावत है। इसलिए आस-पड़ोस और समुदाय में रहने वाले लोगों के व्यवहार और आदतें सामाजिक सद्भाव और शांति के बारे में लोगों की मान्यताओं को काफी हद तक प्रभावित करती हैं।

वर्तमान में हम देख रहे हैं साथियों सद्भाव की भावना का लोप होता जा रहा है और हर व्यक्ति स्वयं के लिए ही सोचता है | आधुनिक युग में मैं मानती हूँ कि भौतिक साधनों की अधिकताओं में मानव को जकड़ रखा है,लेकिन उपर्युक्त बिंदुओं के आधार पर यह कहा जा सकता है कि सद्भाव की प्रथम नींव ही यदि बहुत मजबूत होगी तो परिवर्तन के माध्यम से भी विकसित हो सकता है!और वह दिन भी दूर नहीं जब सद्भाव की भावना के साथ हर व्यक्ति हर कार्य को संपन्न करेगा तो हमारे देश का भविष्य भी उज्जवल ही होगा |

आरती अयाचित,
स्वरचित एवं मौलिक
भोपाल

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