शीर्षक: मेरी पहचान
शीर्षक: मेरी पहचान
किसी और की मेहरबानियों पर मैं जिन्दा हूँ।
मैं समझा,हर एक रचना का
मैं कारकरिंदा हूँ।
मैं!मैं तो कुछ भी नहीं,
मेराअस्तित्व मेरा बजूद
तो है एक पानी का बुलबुला।
हवा है, तो मैं हूँ,
आग है तो मैं हूँ।
अन्न-जल है तो मैं हूँ।
धरा है तो मैं हूँ।
धरा पर घर है, तो मैं हूँ।
तन पर वस्त्र है, तो मैं हूँ।
धूप है तो मैं हूँ।
जो मुझे चलाए,
नित उठाए,
गर लगे भूख तो मुझे खिलाये, बदन मेरे को तरह-तरह के काम पर लगाये,
जो पाया बिन दाम,
उसका कभी आभार न जताऊं।
फिर भी मैं इतराऊं,
मैं मैं करते मिट जाऊं, आज अपना ही घर हुआ है
पराया ,खुदबखुद कपाट में चिटकनी लग कर,
पल भर में मतलब है समझ आया।
मेरा तो कुछ भी नहीं,घर-परिवार और ये संसार,
सब तो है “माही” प्रभू की मोह-माया।लेख राज, शिमला
(एक सच्ची घटना)