शीर्षक:सब कुछ थी माँ
:::::सब कुछ थी माँ ::::
मेरे मन को ऐसे पहचान जाती थी
मानों मनोचिकित्सक थी माँ
मेरे पास बैठते ही समझ जाती थी परेशानी
मानों विशेषज्ञ थी माँ
मेरे जख्मों को छू कर सही कर देती थी
मानों जादूगर थी माँ
चेहरे को देख ही परख लेती थी दुःख
मानों हकीम थी माँ
प्रणाम करने पर खोल देती थी आशीर्वाद का पिटारा
मानों ईश्वर थी माँ
दुःख में साथ लेट सहला कर कम करती थी कष्ट
मानों दर्दनिवारक गोली थी माँ
धरा पर सबसे अलग सबसे न्यारी,प्यारी थी
मानो मेरी माँ
ब्रह्मालीन हो गई फिर भी लगे मुझे आज भी
मानो साथ ही हैं मेरी माँ
उनकी तस्वीर से मुझे लगता हैं कि अभी
मानों बोलेगी मेरी माँ
डॉ मंजु सैनी
गाज़ियाबाद