शीर्षक:मन एक खेत
शीर्षक:मन एक खेत
मन एक खेत,रोपाई का खेत,
बुआई की है, जो मन ने,
अब उगने की बारी है ।
बेड़ा पार लगाये कौन?
जब नैया में रिसाव जारी है।
करनी-भरनी अपने हाथ,
उकेरा है जो सांसों ने,
अब उसे पढ़ने की बारी है।
बेड़ा पार लगाये कौन?
जब नैया में रिसाव जारी है।
दुख-दर्द सबअपने हाथ,
लालच की भट्टी में,
कुछ पाने की हठी में,
जल जाने की भूल भारी है।
बेड़ा पार लगाये कौन?
जब नैया में रिसाव जारी है।
मिलता यहां तभी कुछ ,
जब देने की तैयारी है,
हर एक सांस आती तभी ,
जब पहली छोड़ने में रही वफादारी है,
फूलों की चाहत अब कैसी?
जब काँटों की बुआई भारी है।
बेड़ा पार लगाये कौन?
जब नैया में रिसाव जारी है।
उलझा है प्रेम धागा,
अब इसे सुलझाये कौन?
बीजा है जब नीम का पौधा, आम का फिर उगाये कौन?
खोट अपनी नज़र में,और कहे,प्रभू की किरदारी है ,
बेड़ा पार लगाये कौन?
जब नैया में रिसाव”माही”भारी है। लेख राज