शीर्षक:गुरु मेरा अभिमान
शीर्षक:गुरु मेरा अभिमान
गुरु मेरा मान अभिमान है
उनसे ही मिलता मुझको भी सम्मान है
उनके चरणों में अर्पित हर सच्चाई
उन्होंने दिया मुझको इतना ज्ञान है।
गुरु हमारे जीवन पथ पर
सबसे बड़ा रखता मुकाम
सर्वप्रथम उसको नमन
सर्वप्रथम उनको प्रणाम।
दीपक ज्योति सा जगमग जगमग
करता सबके जीवन का उद्धार
जिसके सर पर रख दे हाथ
उसके उत्तम हो जाते विचार।
माॅं की सी ममता लुटाता
पिता सा कठोर बन जाता
सही गलत का मार्ग दर्शाता
शुभचिंतक बन रहता साथ।
चार शब्दों में लिख ना पाऊंगी
गुरु को कभी भुला न पाऊंगी
गुरु का कहां पूर्ण वर्णन हो पाया
आधा -अधूरा ही हर कोई कर पाया