शीत की शब में …..
शीत की शब् में …
वो
इतने कोहरे में भी
साफ़ नज़र आती है
दो ज़िस्मों की
तपिश का
अहसास
नज़र आती है
शीत की ठिठुरन
मदहोशी की चिलमन
आरज़ूओं की धड़कन
हाय
सच कहता हूँ
आफताब की शरर पे
बर्फ़ से सफेद लिबास में
सोयी
वो
मासूम मुहब्बत की
हसीं किताब
नज़र आती है
जाने कितने ख़्वाबों में
वो सिमटी होगी
शीत की शब् में
वो
हर ख़्वाब का
माहताब नज़र आती है
सुशील सरना