” शीतलहर “
डॉ लक्ष्मण झा”परिमल ”
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कँपकँपी होने लगी ,
अंग ठिठुरने लगे ,
कैसे हम उठ खड़े होंगे ?
कान , नाक, मुंह
शिथिलता के
रूप लेकर
निरंतर रजाइयों में
दुबक गए हैं !
लगता है फिर नये
कानून के सर्द
हवाओं का झोंका
हमें बैचैन कर गए हैं !!
ना अंगीठियाँ
ना लकड़ियाँ
ना घासलेट का इंतजाम
कौन करे ?
नए -नए पेचीदा कानून
मौलिक अधिकारों
की बात कौन सुने ?
ठंठ के प्रकोप से
लोग सारे स्तब्ध हो रहे हैं !
शासक बंद कमरों में
अपनी आग सेंक रहे हैं !!
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डॉ लक्ष्मण झा”परिमल ”
साउंड हेल्थ क्लिनिक
एस ० पी ० कॉलेज रोड
दुमका
झारखण्ड
भारत