#शिव के भक्त – भक्तों के शिव
🔱 #शिव के भक्त – भक्तों के शिव 🔱
साहित्यकार डॉक्टर रामकुमार वर्मा ने साहित्य की कई विधाओं को समृद्ध किया। उन्हें हिंदी एकांकी का जनक कहा जाता है। वे अभिनेता भी थे और हास्यकवि भी। ईस्वी सम्वत १९६५ के आसपास साहित्यिक पत्रिका धर्मयुग में उनका एक संस्मरण प्रकाशित हुआ था जिसमें उन्होंने अपने जीवन की चार घटनाओं का वर्णन किया था।
वे लिखते हैं कि मैं बालपन से ही शिवभक्त हूँ। लगभग चौदह वर्ष की आयु में एक रात स्वप्न में भगवान भोलेशंकर ने उन्हें दर्शन दिए। भगवान कैलासशिखर पर विराजमान थे और उनके वामांग माँ पार्वती थीं। मैं किंचित भयभीत हुआ। तभी जगतमाता बोलीं, “बेटा डरो मत, भगवान तुम पर प्रसन्न हैं। जो इच्छा हो मांग लो।”
मैंने अपने बालपन का परिचय देते हुए कहा कि ऐसा कर दें कि मेरे परिवार का कोई व्यक्ति कभी नहीं मरे।
भोलेभंडारी इतने उच्चस्वर में ठहाका लगाकर हँसे कि मेरी आँख खुल गई। मेरा तनवसन पसीने से भीगा हुआ था।
दूजी घटना तब की है जब वे कॉलेज के विद्यार्थी थे। मित्रों के संग गंगास्नान को जाना उनका नित्य का खेल था। परंतु, कोई कितना भी कुशल तैराक हो यदि भँवर में उलझ जाए तो उससे निकल पाना बहुत कठिन होता है। उस दिन मित्रों ने मुझे भँवर में फंसकर नीचे जाते हुए तो देखा परंतु, बहुत समय बीतने पर भी जब मैं वापस ऊपर नहीं लौटा तो बिचारे वहीं बैठकर विलाप करने लगे। और मैं बहती धारा के साथ नीचेनीचे बहुत दूर वहाँ तक निकल गया जहाँ एक मछुआरा अपनी नाव खे रहा था। उसे मेरा सिर दिखाई दिया। तभी उसने बालों से पकड़कर मुझे ऊपर खींच लिया।
मैं इतनी दूर पहुंच चुका था कि वो भी आश्चर्यचकित होकर बोला, “पानी के नीचेनीचे इतनी दूर तक बहकर आने वाले के मुंह में एक बूंद पानी नहीं गया। यह भोलेबाबा की ही कृपा है भय्या!”
तीसरी घटना इस तरह है कि जब वे अध्यापक हो चुके थे तब एक दिन घर के पुस्तकालय में कुछ ढूंढ रहे थे। एक अलमारी में एक बड़ा-सा लिफाफा दिखा। उसमें हाथ डालकर बाहर निकाला तो उनके हाथ में चार-पाँच फुट लंबा नाग था जिसे उन्होंने तुरंत छोड़ दिया और वो झट से नाली के रास्ते बाहर निकल गया।
चौथी घटना तब की है जब वे नगर से दूर एक नवीन उपनगर में बस गए थे। ठिठुरती कंपकंपाती सर्दी की रात थी उस दिन। दवा लेने के लिए शहद मांगा तो पता चला कि शहद तो कल ही समाप्त हो गया था और आज लाना भूल गए। डॉक्टर का कहना था कि एक निश्चित अवधि तक दवा नियमित लेनी है, यदि एक दिन भी छूट गया तो फिर से आरंभ करनी होगी। इस नवीन बस्ती में नाममात्र की ही दुकान थी और वो भी सूरज ढलने के साथ ही बंद हो जाती थी। अब क्या करें?
खोजने पर घर में ही टिन की एक डिबिया मिल गई जो न जाने कब लेकर आए थे। उसमें मात्र इतना ही शहद था कि आज का काम चल जाए। खुरचखरोंचकर उसमें से जो शहद निकला उसी से मैंने दवा ले ली।
लेकिन, कुछ पल ही बीते थे कि मैं अचानक गिरकर मूर्छित हो गया। बस्ती में संभवतया डॉक्टर की दुकान तो थी परंतु, इस समय तो मिलेगा नहीं। पासपड़ोस में अभी जानपहचान नहीं थी। तब अपने पारिवारिक डॉक्टर को फोन किया गया तो उन्होंने इस समय इतनी दूर आने में असमर्थता व्यक्त करते हुए कहा कि आप कार में डालकर उनको यहाँ मेरे पास ले आइए।
डॉक्टर देखते ही चौंके। शरीर का रंग धीरे-धीरे नीला पड़ता जा रहा था। वे बोले, “इन्होंने विषपान किया है अथवा इन्हें विष दिया गया है।”
उनसे पुरानी पहचान थी इसलिए उन्होंने तुरंत उपचार आरंभ किया। पूरी रात उन्होंने भी जागकर बिताई। दिन निकलने के साथ-साथ मुझे चेत हुआ। तब उन्होंने शहद की वो डिबिया मंगवाई और उसे जाँचने के लिए प्रयोगशाला में भेज दिया।
तब एक दिन, डॉक्टर घर पर आए। उनके हाथ में उस शहद की जाँचरपट थी। उन्होंने बताया कि टिन की डिब्बी में वो शहद इतना पुराना हो चुका था कि विष बन गया और विष भी ऐसा प्राणघातक कि पलभर में व्यक्ति के प्राणपखेरू उड़कर प्रभुचरणों में जा पहुंचें। लेकिन, आपको उस दिन मेरे पास आने में न्यूनतम डेढ़ घंटा तो लगा होगा। ऐसा चमत्कार कैसे हुआ? मैं अचंभित हूँ।
लेकिन, मैं अचंभित नहीं था। भोलेबाबा ने तीन बार मेरे प्राण लौटाए हैं। अब आगे क्या-क्या होने वाला है, वही जानें।
जब यह संस्मरण प्रकाशित हुआ तब उनकी आयु लगभग साठ वर्ष थी और पचासी वर्ष की आयु में वे शिवचरणों में लीन हुए।
हे सुधि पाठक, आपके पास इस संस्मरण के बाद की कुछ जानकारी हो तो सांझा करें।
#वेदप्रकाश लाम्बा
यमुनानगर (हरियाणा)
९४६६०१७३१२