शिखर
ऊँची- ऊँची शिखरों को,
छूने का उत्साह हुआ ।
थक- कर जब चूर हुए,
फिर भी मन में विश्वास रहा ।
बुलंदियों को पाने को,
प्रश्न चिन्ह का मार्ग बना ।
सहसा एक आवाज सुनी,
नहीं! यह शिखरे ऊँची हैं ।
रुक जाओ, मेरी सुनो,
कितने यहाँ बलिदान हुए ।
देखो उन ऊंँचे- ऊंँचे,
शिखरो के शीश को ।
कहता है गर्व से,
मस्तक यह विशाल लिए ।
हे शिखर! तोड़ दूंँगा,
तेरे इस घमण्ड को ।
दृढ़ निश्चय करके आया हूंँ,
पताका यही लहराऊँगा ।
प्रातः सूर्य उदय होगा ,
ओज हृदय में भर देगा ।
नई सुबह नई उमंग ,
लालिमा की किरण बिखेरेगा ।
#बुद्ध प्रकाश, मौदहा (हमीरपुर)