शिक्षा
मां
उसे शैशव से
जिगर का टुकड़ा कहती रही
उसी की संवेदनाओं में
वह प्रतिपल बहती रही
अपने मुंह का निवाला
खिलाया है उसको
ममत्व के जल से
हर रोज नहलाया है उसको
लाख बलाओं से बचा बचा कर
युवा आज बनाया है उसको
अब उसकी भुजाओं में
तरुणाई का उत्साह भर गया है
और
मां का चेहरा अब
झुर्रियों से भर गया है
चलना दूभर हो गया है उसको
अब मां उसे बोझ लगती है
मखमली कालीन
और
चमकती दुनिया में
मां बन गई है आपमान का पर्याय
मां की अनुभूतियां
और उसकी ममता की सारी उछालें
अब उसके हृदय की
भित्तिओं से टकराकर टूट जाती हैं
मन मसोसकर निकलते निश्वास
बस यही कहते हैं
“सुखी रहो बेटा तुम सदा”
मैं अक्सर सोचता हूं
उसने कैसी शिक्षा पाई होगी ….?
जिसमें मां के लिए
एक भी पंक्ति न आई होगी …….?
जिसमें मां के लिए
एक भी पंक्ति न आई होगी।।