शिक्षा पदाधिकारियों की धौंस !
शिक्षा पदाधिकारी अपने बच्चों को सरकारी विद्यालय में नहीं पढ़ाते हैं, किन्तु सरकारी विद्यालयों में औचक निरीक्षण के नाम पर वे ‘शिक्षकों’ को विद्यार्थी के समक्ष उलजुलूल प्रश्न कर और उत्तर न पा उन्हें बेइज्जत जरूर करते हैं ! अगर वैसे शिक्षा पदाधिकारी से ये शिक्षक प्रतिप्रश्न पूछ लें तो अनुशासनहीनता और कर्त्तव्यहीनता के लिए ‘सो कॉज’ तय है ! शिक्षा पदाधिकारी विद्यालय आएंगे और बिना पूछे हेडमास्टर की कुर्सी पर बैठ जाएंगे, फिर तुरंत फरमान देंगे- ‘टीचर्स अटेंडेंस लाइये !’ फिर किसी शिक्षक की अनुपस्थिति अथवा सीएल पिटिशन पर मीन-मेख शुरू और लाल-हरे कलम दौड़ा देंगे! फिर शिक्षकों की परेड शुरू !
माना शिक्षा पदाधिकारी ‘प्रशासक’ हैं, किन्तु उन शिक्षकों के अभिभावक भी तो हैं ! उन्हें ऐसे कृत्य से दूर रहने चाहिए, ताकि उनके कृत्य ‘हॉरर’ न लगे ! ऐसे कई शिक्षा पदाधिकारियों और विश्वविद्यालय के हिंदी विभाग के द्वारा जारी पत्र और सूचना में हिंदी शब्द लेखन और वाक्य-संयोजन में काफी अशुद्धियाँ देखी गई है ! छात्र या छात्राएँ; जहाँ विद्यालय में सामान्यतः 6 घंटे रहते हैं, जबकि घर पर 18 घंटे रहते हैं । यह कैसी दोहरी नीति है, 6 घंटे वाले को दोषी ठहराते हैं, किन्तु 18 घंटे ‘अभिभावक’ के पास रहने पर भी यानी साक्षर अभिभावक को भी दोषी नहीं मानते हैं! ऐसे में शिक्षकों में हीनभावना भरती चली जाती है।