शिक्षा की हालत
आज भी एकलव्य,
मिट्टी के पुतले से शिक्षा पाता है।
पहले राजवंश था,
अब गरीबी से नहीं पढ़ पाता है।।
लिखाता है नाम,
सरकारी स्कूल भी जाता है।
शिक्षक विहीन स्कूल,
भोजन कर वापिस आता है।।
अतिथि या शिक्षामित्र,
अब कम में स्कूल चलाते है।
इसलिए देश के कर्णधार,
शिक्षकों की भर्ती नहीं कराते है।।
जो है उन्हें दे वेगारी,
हर काम कराया जाता है।
मास्टर चाबी की तरह,
हर ताले में लगाया जाता है।।
मौका मिलता ही नहीं,
स्कूल जाकर बच्चो को पढाना है।
खराब स्तर का दोष,
शिक्षक को ही ठहराया जाता है।।
इसी कारण पैसे वाले,
निजी स्कूल में बच्चे पढ़ाते है।
पर एकलव्य जैसे,
सरकारी स्कूल ही पढ़ने जाते है।।
प्रयास होते रहे,
गुणवत्ता में सुधार जरूरी है।
पर बगैर शिक्षक ,
सारी योजना रहती अधूरी है।।
अब अार,टी, ई,
एक से आठ कक्षोन्नती देती है।
कैसे सुधरेगी शिक्षा,
जब कक्षा स्तर न आने देती है।।
राजेश कौरव “सुमित्र”