Sahityapedia
Login Create Account
Home
Search
Dashboard
Notifications
Settings
1 Jul 2024 · 2 min read

शिक्षा अर्थ रह गई

आज की शिक्षा,शिक्षा नहीं,आज लोगों के पास वक्त नहीं, आज परवाह नहीं किसी की बस एक सवाल मन में लोगों के पैसा…पैसा…. पैसा …..है तो इज्जत है, पैसा है तो सम्मान है, पैसा है तो सब कुछ है, पैसा है तो मां बाप हैं, आज भारत की इस संस्कृति को देखकर बड़ा दुखी हूं,जब देखता हूं,लोगों को जो घर में है,जो साथ है, जो साथ दे रहा है,उसे नाकारा समझते हैं उन्हें लगता है यह किसी काम का नहीं किंतु वास्तविकता देखें तो कहीं ना कहीं वही उनके सबसे ज्यादा काम आ रहा है। वही उनके दुख में है,वही उनके सुख में है, किंतु आज समाज इसे स्वीकार नहीं करता। समाज स्वीकार करता है जो उनसे दूर है,जो उनकी कोई परवाह नहीं करता हो जो केवल वर्ष में एक बार आता है दो-चार दिन साथ रहकर चंद पैसों को खर्च करता हो वह उन्हें लाजमी समझते हैं वह उन्हें बेहतरीन समझते हैं यही कारण है समाज की मानसिकता बदल रही है इसीलिए आज की पीढ़ियां मां-बाप से दूर हो रही है यही कारण है लोग अपनों से दूरी बढ़ा रहे हैं लोग संयुक्त परिवार से एकल परिवार हो रहे हैं। क्या यही भारत की संस्कृति रही है। क्या भारत के ऋषि मुनियों ने इसी भारत की कल्पना की थी। कहीं ना कहीं जो शिक्षा को केवल अर्थ मानकर अग्रसर कर रहे हैं, वही आज इस समाज के पतन का कारण बन रहा है। आज मैं शहरों में देखता हूं तो यह दृश्य दिखाई देता है कहीं ना कहीं आने वाले कुछ समय के बाद यह दृश्य आपको गांव में भी दिखाई देंगे क्योंकि यह समाज धीरे-धीरे दूषित होता जा रहा है।आज सबको समझने की जरूरत है, शिक्षा अर्थ नहीं आधार है। एक नवीन समाज का, एक नवीन भारत का एक नवीन विश्व का ।

Language: English
1 Like · 20 Views
📢 Stay Updated with Sahityapedia!
Join our official announcements group on WhatsApp to receive all the major updates from Sahityapedia directly on your phone.
Books from प्रकाश जुयाल 'मुकेश'
View all
You may also like:
" सैल्यूट "
Dr. Kishan tandon kranti
मुक्तक-विन्यास में रमेशराज की तेवरी
मुक्तक-विन्यास में रमेशराज की तेवरी
कवि रमेशराज
आज कल !!
आज कल !!
Niharika Verma
*चाल*
*चाल*
Harminder Kaur
हुईं मानवीय संवेदनाएं विनष्ट
हुईं मानवीय संवेदनाएं विनष्ट
Umesh उमेश शुक्ल Shukla
हरे भरे खेत
हरे भरे खेत
जगदीश लववंशी
ज़िम्मेवारी
ज़िम्मेवारी
Shashi Mahajan
मैं अपनी आँख का ऐसा कोई एक ख्वाब हो जाऊँ
मैं अपनी आँख का ऐसा कोई एक ख्वाब हो जाऊँ
Shweta Soni
अपने हक की धूप
अपने हक की धूप
भवानी सिंह धानका 'भूधर'
बिना काविश तो कोई भी खुशी आने से रही। ख्वाहिश ए नफ़्स कभी आगे बढ़ाने से रही। ❤️ ख्वाहिशें लज्ज़त ए दीदार जवां है अब तक। उस से मिलने की तमन्ना तो ज़माने से रही। ❤️
बिना काविश तो कोई भी खुशी आने से रही। ख्वाहिश ए नफ़्स कभी आगे बढ़ाने से रही। ❤️ ख्वाहिशें लज्ज़त ए दीदार जवां है अब तक। उस से मिलने की तमन्ना तो ज़माने से रही। ❤️
डॉ सगीर अहमद सिद्दीकी Dr SAGHEER AHMAD
सत्य और सत्ता
सत्य और सत्ता
विजय कुमार अग्रवाल
जज्बात की बात -गजल रचना
जज्बात की बात -गजल रचना
Dr Mukesh 'Aseemit'
एक अजीब कशिश तेरे रुखसार पर ।
एक अजीब कशिश तेरे रुखसार पर ।
Phool gufran
मन के सवालों का जवाब नाही
मन के सवालों का जवाब नाही
भरत कुमार सोलंकी
पढ़ो लिखो आगे बढ़ो...
पढ़ो लिखो आगे बढ़ो...
डॉ.सीमा अग्रवाल
मेरे दिल की गहराई में,
मेरे दिल की गहराई में,
Dr. Man Mohan Krishna
टूटकर जो बिखर जाते हैं मोती
टूटकर जो बिखर जाते हैं मोती
Sonam Puneet Dubey
अंतर
अंतर
Dr. Mahesh Kumawat
ग़ज़ल _ आराधना करूं मैं या मैं करूं इबादत।
ग़ज़ल _ आराधना करूं मैं या मैं करूं इबादत।
Neelofar Khan
वो मुझे पास लाना नही चाहता
वो मुझे पास लाना नही चाहता
कृष्णकांत गुर्जर
फिर से अपने चमन में ख़ुशी चाहिए
फिर से अपने चमन में ख़ुशी चाहिए
Monika Arora
23/104.*छत्तीसगढ़ी पूर्णिका*
23/104.*छत्तीसगढ़ी पूर्णिका*
Dr.Khedu Bharti
ग़ज़ल/नज़्म - फितरत-ए-इंसा...आज़ कोई सामान बिक गया नाम बन के
ग़ज़ल/नज़्म - फितरत-ए-इंसा...आज़ कोई सामान बिक गया नाम बन के
अनिल कुमार
*बुखार ही तो है (हास्य व्यंग्य)*
*बुखार ही तो है (हास्य व्यंग्य)*
Ravi Prakash
वर्तमान गठबंधन राजनीति के समीकरण - एक मंथन
वर्तमान गठबंधन राजनीति के समीकरण - एक मंथन
Shyam Sundar Subramanian
"रेलगाड़ी सी ज़िन्दगी"
Dr. Asha Kumar Rastogi M.D.(Medicine),DTCD
अखंड भारत कब तक?
अखंड भारत कब तक?
जय लगन कुमार हैप्पी
उफ़ ये कैसा असर दिल पे सरकार का
उफ़ ये कैसा असर दिल पे सरकार का
Jyoti Shrivastava(ज्योटी श्रीवास्तव)
रक्षाबंधन
रक्षाबंधन
Santosh kumar Miri
मन के द्वीप
मन के द्वीप
Dr.Archannaa Mishraa
Loading...