शिक्षा अर्थ रह गई
आज की शिक्षा,शिक्षा नहीं,आज लोगों के पास वक्त नहीं, आज परवाह नहीं किसी की बस एक सवाल मन में लोगों के पैसा…पैसा…. पैसा …..है तो इज्जत है, पैसा है तो सम्मान है, पैसा है तो सब कुछ है, पैसा है तो मां बाप हैं, आज भारत की इस संस्कृति को देखकर बड़ा दुखी हूं,जब देखता हूं,लोगों को जो घर में है,जो साथ है, जो साथ दे रहा है,उसे नाकारा समझते हैं उन्हें लगता है यह किसी काम का नहीं किंतु वास्तविकता देखें तो कहीं ना कहीं वही उनके सबसे ज्यादा काम आ रहा है। वही उनके दुख में है,वही उनके सुख में है, किंतु आज समाज इसे स्वीकार नहीं करता। समाज स्वीकार करता है जो उनसे दूर है,जो उनकी कोई परवाह नहीं करता हो जो केवल वर्ष में एक बार आता है दो-चार दिन साथ रहकर चंद पैसों को खर्च करता हो वह उन्हें लाजमी समझते हैं वह उन्हें बेहतरीन समझते हैं यही कारण है समाज की मानसिकता बदल रही है इसीलिए आज की पीढ़ियां मां-बाप से दूर हो रही है यही कारण है लोग अपनों से दूरी बढ़ा रहे हैं लोग संयुक्त परिवार से एकल परिवार हो रहे हैं। क्या यही भारत की संस्कृति रही है। क्या भारत के ऋषि मुनियों ने इसी भारत की कल्पना की थी। कहीं ना कहीं जो शिक्षा को केवल अर्थ मानकर अग्रसर कर रहे हैं, वही आज इस समाज के पतन का कारण बन रहा है। आज मैं शहरों में देखता हूं तो यह दृश्य दिखाई देता है कहीं ना कहीं आने वाले कुछ समय के बाद यह दृश्य आपको गांव में भी दिखाई देंगे क्योंकि यह समाज धीरे-धीरे दूषित होता जा रहा है।आज सबको समझने की जरूरत है, शिक्षा अर्थ नहीं आधार है। एक नवीन समाज का, एक नवीन भारत का एक नवीन विश्व का ।