गुरु शब्द द्वंद्वात्मक
चाहत सिखलाया करती है,
यही खोज कर लाती है,
मानव को मुमुक्षु बनाती है,
यही है शिक्षा में आधार.
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परिचायक है यही, चाहत.
यही है कर्मो के पीछे,
निसर्ग से हो साक्षात्कार.
तब समझ आती है..
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हर रोज छोडे कर आता हूँ.
वापिस लौट कर आती है,
भूख,प्यास और मलमूत्र तज,
नये नये तजुर्बे सिखाती है.
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किसे कहे गुरुवर, खुद से बेमानी है,
माता पिता सुध बुध दीन्ही,
सिखला दिया खाना, कमाना.
नहीं पडा किसी और के पास जाना.
पहना दिया घर गृहस्थी सा बाणा.
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डॉक्टर महेन्द्र सिंह हंस