शिकायत
देख जमाने की करतूतें किस को दर्द बताऊँ
मैं तू ही मेरे खून की प्यासी बोल कहां अब जाऊँ मैं
मेरी जगह जो पुत्र होता सब सुखिया तुझे मिल जाती
कोई युक्ति मुझे बता दे कैसे बेटा बन पाऊं मैं
तू’ सबला’ अबला की दुश्मन खून तेरी आँखों में है
पत्थर जैसे हृदय वाली किसको चीख सुनाऊँ मैं
माँ जैसे शब्दों की मालिक, अनिष्टता की पूरक तू
चंद दिवसों की मोहलत देदे क्रोध तेरा पी जाऊं मै
तेरे प्रफुल्लित जीवन में आकर मैनें दखल दिया
कर देगी तू सीना छलनी सोच-सोच डर जाऊँ मैं’
मेरी किलकारी”से ज्यादा डर तेरी खामोशी में
इस भारी भरकम जीवन का कैसे भार उठाऊं मै
अपने मेरे रुठे रुठे ,रुठे रुठे अपने हैं
अपना ही जीवन जीने का कैसे सपन सजाऊँ मैं’
‘गर्वित’ जमाने को दिखला दे खून की कीमत क्या होगी
दे मेरा जीवन मुझको मां सीने तेरे लाग पाऊं मैं