शाहजहाँ के ताजमहल के मजदूर
लोहे को पिघलाकर जो उसका आकार बदल देता है ।
ईट -ईट को जोड़कर जो महल खड़ा कर देता हैं ।
अपने श्रम का दान कर, जो दूसरो का काम कर जाता है ।
याद हैं आज भी बरबस जुबान पर नाम आ जाता है ।
उस्ताद अहम लाहौरी और उस्ताद ईसा खान ।
ताजमहल के थे जो सरनाम वास्तुकारो मे प्रधान ।
अजूबा बना हैं अपनी प्रेम और सुंदरता का आज पूरे जहान ।
पूछने पर कह दिया जाता है ताजमहल बनाया शाहजहां ने ।
ताजमहल बनाने का कैसा उनको ये प्रतिफल मिला ।
20 हजार मजदूरो ने मिल 22 साल मे यह ऐतिहासिक काम किया ।
मुमताज की याद मे शाहजहां के प्यार को देख ताजमहल का निर्माण किया ।
और उनको उसके बदले में अपने हाथ-पैर गंवाने पड़े ।
क्योकि शाहजहां ने सोचा कि ऐसा अजूबा फिर कभी न बने ।
श्रम दान से बढकर न दान कोई हमको समझ में आता हैं ।
खून, पसीना अपना बहाकर चंद पैसो के लिए वो ।
झोपङ -पट्टी मे गुजर -बसर कर आपका आलीशान महल बनाता है ।
साम्यवाद विचारधारक कार्ल मार्क्स ने कहा है क्या ।
कि हे ! विश्व के मजदूरो तुम सब एक हो जाओ ।
क्योकि तुम्हारे पास खोने को बेङिया है और पाने के लिए संसार ।
एक बात तुम ये समझ लेना मजदूरो का कोई देश नही होता है ।
अमेरिका मे मजदूरो को 18-18 घण्टे खटाएं जाते थे ।
अमेरिका के मजदूर यूनियन ने काम को 8 घण्टे तक करने की कवायद रखी ।
इसी के विरूद्ध मे हड़ताल किए ,न्याय का फरमान दिए ।
1 मई 1886 से मजदूर दिवस मनाया जा रहा ।
ये मजदूर ही हैं जिसके बलबूते कोई कोई अरबपति – खरबपति बन रहा ।
मजदूर नही वो हमारे विश्वकर्मा भगवान् हैं ।
उन्ही से लाल किला, गीजा पिरामिड और विश्व के पर्यटन गौरववान है ।
जय मजदूर – जय श्रमपरिपूर्ण – जय मां लक्ष्मी नूर ।
जहां श्रम वहां दुनिया का हरेक पदार्थ हैं ।
जहां आलस्य हैं वहां केवल श्मशान हैं ।
तप और श्रम के ही बल पर ये धरा की डोर है ।
ब्रह्म-विष्णु – महेश का यही मंत्र और शक्तिपुंज है ।
श्रमदानी :- Rj Anand Prajapati