शास्त्रीय गायक भाइयों राजन और साजन मिश्रा की जोड़ी टूटी
बेहद दुःख की बात है कि समस्त प्रयासों के उपरान्त भी पद्मभूषण पंडित राजन मिश्र जी को वेंटीलेटर नहीं मिल सका, जिसे के कारण रविवार, शाम तक़रीबन 6:25 बजे के आसपास राजन जी का कोरोना से निधन हो गया। वे 70 वर्ष के थे। रविवार की सुबह से ही पंडित जी गंभीर हालत में अस्पताल में भर्ती थे। इसकी जानकारी स्वयं साजन मिश्र जी ने दी, “हमारे भइया राजन जी नहीं रहे।” अतः राजन मिश्र जी की मौत कीख़बर ने कला-संगीत की दुनिया से जुड़े लोगों को रविवार शाम बड़ा झटका दिया है। बड़ी-बड़ी हस्तियों ने फ़िल्मी, साहित्यिक, राजनैतिक सभी ने सोशल साइट पर अपने-अपने तरीक़े से उन्हें श्रृद्धांजलि दी है। जो आज सोमवार भी बदस्तूर ज़ारी है। प्रधानमन्त्री मोदी जी ने इसे शास्त्रीय संगीत की अपूरणीय क्षति बताया है। मिश्र जोड़ी ने दशकों तक अपने गायन से करोड़ों दिलों को सुकून बख़्शा था।
दोनों मिश्र बन्धु संगीत के साथ-साथ पहलवानी के भी बेहद शौकीन रहे। बचपन में अपने छोटे भाई साजन मिश्र के साथ अखाड़े में कुश्ती करके खुद को और भाई को चुस्त-दुरुस्त रखते थे। इसके अलावा क्रिकेट खेलने का भी उन्हें बहुत शौक़ था। कॉलेज स्तर तक उन्होंने क्रिकेट खेला भी खेला था। ख़ाली वक़्त में संगीत का नियमित अभ्यास करते और बड़े-बड़े संगीताचार्यों की रिकॉर्डिंग भी सुनते थे।
मिश्रा बंधू बनारस राज घराने से संबंध रखने वाले भारत के सुप्रसिद्ध शास्त्रीय गायक हैं, जिन्होंने विदेशों में भी खूब प्रदर्शन किया और वाह-वाही लूटी। जिसके चलते भारत सरकार ने उन्हें 2007 ईस्वी. में कला के क्षेत्र में पद्म भूषण से सम्मानित किया था। दोनों भाइयों की जुगलबन्दी श्रोताओं के कानों में रस घोलती रही। 1978 ईस्वी. में श्रीलंका में अपना पहला संगीत कार्यक्रम किया, तब से उन्होंने दुनिया भर के कई देशों में प्रदर्शन किया, जिनमें—जर्मनी, फ्रांस, स्विट्जरलैंड, ऑस्ट्रिया, ब्रिटेन, नीदरलैंड, यू.एस.एस.आर., संयुक्त राज्य अमेरिका, सिंगापुर, कतर, बांग्लादेश शामिल हैं।
दोनों मिश्र बन्धुओं का अटल विश्वास रहा कि जैसे, मानव शरीर की संरचना पांच तत्वों से मिलकर हुई, ठीक वैसे ही संगीत के सात सुरों ‘सा…. रे…. गा…. मा…. पा…. धा…. नी…. ’ में व्याप्त स्वर प्रकृति में व्याप्त नदियों, झरनों, सागर के जल से उतपन्न स्वर हों या पशुओं की, पक्षियों की भिन्न-भिन्न आवाज़ें। पेड़-पौधों के मध्य से गुज़रती हवाओं की आवाज़ें! सबमें यही सरगम व्याप्त है। इसी से मानव ने संगीत की रचना और प्रेरणा ली। प्रकृति पर बढ़ते मानव अतिक्रमण से दोनों भाई खिन्न थे। दोनों भाइयों ने समस्त आपदाओं के लिए प्रकृति को नहीं बल्कि मानवों का ग़ैर-जिम्मेदाराना रवैये को दोषी माना था। मिश्र बन्धुओं कि सोच यही थी कि यदि वसुंधरा को खुशहाल और सम्प्पन बनाना है तो मानव को इसके दोहन से बचना होगा। हर व्यक्ति को प्रकृति के अनुसार ढलना होगा, अन्यथा सर्वनाश हो जायेगा। ईश्वर राजन मिश्र जी की आत्मा को शान्ति प्रदान करे। ॐ शान्ति।