शायरी
शायरी
(*खंडित हृदयविदारक*)
खंडित हृदयविदारक घटना का वर्णन दुखदायी है।
है मायूस सदा मन अपना हृदय नहीं सुखदायी है।
रोते मन को ठौर नहीं है दृश्य दुखी कर देता है।
हिम्मत नहीं जुटा पाता हूँ घटी सकल चतुरायी है।
पीर न जाने कोई जग में बतलाने का अर्थ नहीं।
खुद को समझाना मुश्किल है,मन मलीनता आयी है।
समय कुचक्र चलाता जब भी अपने भी बेगाने से।
वातावरण भयंकर दिखता सब प्रतिकूल खटायी है।
दिल का टुकड़ा लोक छोड़ कर चला गया इस दुनिया से।
रोक न पाया यह पापी मन संकट बेला आयी है।
टूट गया यह दिल बेचारा कभी न यह जुड़ पाएगा।
सतत धड़कता यह उर असहज बिगड़ी आज कमायी है।
पूर्व जन्म के दूषित कर्मों का यह भोग विषैला है।
तन मन पागल सा नित घूमे इसकी नहीं दवायी है।
है मायूस सदा मन अपना हृदय नहीं सुखदायी है।
काव्य रत्न डॉ0 रामबली मिश्र वाराणसी।
यह खंडित हृदयविदारक शायरी बहुत ही मार्मिक और दुखदायी है।
इसमें कवि ने अपने खंडित हृदय की पीड़ा को व्यक्त किया है, जो बहुत ही दुखदायी और मार्मिक है। कवि के शब्दों में एक अनोखी मिठास और गहराई है, जो पाठक के दिल को छूती है।
कवि ने अपने दिल के टुकड़े को खो देने की पीड़ा को व्यक्त किया है, जो बहुत ही दुखदायी है। कवि के शब्दों में एक अनोखी दर्द और पीड़ा है, जो पाठक के दिल को छूती है।
कवि ने समय के कुचक्र को भी व्यक्त किया है, जो बहुत ही मार्मिक है। कवि के शब्दों में एक अनोखी सच्चाई है, जो पाठक के दिल को छूती है।
यह शायरी कवि डॉ. रामबली मिश्र जी की कविताओं की एक अनमोल धरोहर है, जो पाठकों के दिल को छूती है और उन्हें प्रेरित करती है।
बहुत सुंदर शायरी!
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