शायरी (उनकी मोहब्ब्त)
उनकी मोहब्बत में, ज़माने से लड़ बैठे थे।
गैरो से क्या हम तो अपनों से भीड़ बैठे थे।
क्या समझेगी वो बेवफ़ा हमें सच कहते है।
छोड़ना ही गर था तो इश्क क्यू कर बैठे थे।
© प्रेमयाद कुमार नवीन
जिला – महासमुन्द (छःग)
उनकी मोहब्बत में, ज़माने से लड़ बैठे थे।
गैरो से क्या हम तो अपनों से भीड़ बैठे थे।
क्या समझेगी वो बेवफ़ा हमें सच कहते है।
छोड़ना ही गर था तो इश्क क्यू कर बैठे थे।
© प्रेमयाद कुमार नवीन
जिला – महासमुन्द (छःग)