शायद मुझसा चोर नहीं मिल सकेगा
क्योंकि चोरों से हटकर की है मैंने चोरी,
चुराई है मैंने जो चीज चोरी में,
नहीं मिल सकेगी तुमको सच में,
दुनिया के किसी भी बाजार में,
खुद को गिरवी रखने पर भी,
क्योंकि वह अनमोल है ।
वह शान है किसी के जीवन की,
वह हीरा है किसी के परिवार का,
वह सम्मान है किसी के सपनों का,
और किया है चोरी मैंने वह हीरा,
छुपाया है उसको ऐसी जगह ,
कि तुम जान देकर भी ,
उसको पा नहीं सकोगे सच में।
क्योंकि दी है उसको मैंने,
आजादी किसी कैद से,
बहुत बहाया है पसीना मैंने,
उसको चुराने में कैद से,
दिया है उसको मैंने सच में,
एक नया जीवन जिंदगी में,
और अब खुद कैद है मुझमें।
बनाया है उसको मैंने सच में,
मेरी जान मेरी जिंदगी की,
मेरी शान मेरे जीवन की ,
मेरा सम्मान और मेरा गर्व,
मेरा ख्वाब और मेरी दुहा,
लिख दिया उसका नाम मैंने,
मेरे इतिहास और भविष्य में।
वह बन गई है ज्योति मेरे लिए,
वह बन गई है हिम्मत मेरे लिए,
वह बन गई है नसीब मेरा अब,
बहुत मचलते हैं उसके लिए,
उसको चुराकर पाने के लिए,
लेकिन मैंने रखा है उसको,
चुराकर इस दुनिया से ऐसी जगह,
जिसको कोई भी चोर नहीं चुरा सकता,
शायद मुझसा चोर नहीं मिल सकेगा।
शिक्षक एवं साहित्यकार-
गुरुदीन वर्मा उर्फ जी.आज़ाद
तहसील एवं जिला- बारां(राजस्थान)
मोबाईल नम्बर- 9571070847