शाम की बारिश
इस कहानी के सभी पात्र और घटनाए काल्पनिक है, इसका किसी भी व्यक्ति या घटना से कोई संबंध नहीं है। यदि किसी व्यक्ति से इसकी समानता होती है, तो उसे मात्र एक संयोग कहा जाएगा।
हे भगवान !
आज हमे जल्दी उठना था पर कम्बख़्त ये नींद भी ना..☺️जिस दिन जल्दी उठना होता है उसी दिन जमकर नींद आती है। यार किचन में कोई सब्जी ही नही है अब क्या बनाऊ लेट भी हो रहा और स्नान भी नही किया है अगर मार्केट गई तो और लेट हो जाना है तो काम करती हूं दाल चावल बना लेती हूं और लंच के लिए ब्रेड जैम रख लूँगी।
तैयार होकर दाल चावल खा कर ऑफिस चली गई।
लंच टाइम हुआ तो सब शर्त लगाने लगे आज भी अमरीन के डब्बे में वही ब्रेड और जैम होगा । यह मज़ाक तो रोज का हो गया था ।
कोई कहता या कहती नही हैं…??
तो कोई कहता 100%यही है…??
मैं मुस्कुराकर कहती नही आज भी रोज की तरह वही है।?हम जितने कलिग़ काम करते थे उनमें से 4 लोगो का यही एक लंच था रोज यही अपने डिब्बे में लाते थे। तो ये रोज इस तरह मज़ाक चलता। लंच कर सब अपने-अपने काम मे लग गए मार्च क्लोजिंग था,तो आज किसी के पास गप्पे लड़ाने का समय ही नही,सब अपने-अपने डेस्क-लैपटॉप पर लगे पड़े थे,चाय वाला मोनू कब आया कब डेस्क पर चाय रख गया पता ही नही चला बगल वाले डेस्क पर मंजरी ने आवाज लगाई तेरी चाय तो Hot हो रही है अमरीन जरा cool करके पीना☺️☺️ मैं समझ गई वो उल्टा बोल रही है,पर हमने भी की-बोर्ड पर हाथ चलाते चलाते कहां नही बहना हमे तो Hot ही पसंद है।
जल्दी-जल्दी सारा काम निपटा दिया और
Office से निकलते वक्त अपने कलिग़ से कहा मैंने अपना काम पूरा कर दिया है।फिर भी बाक़ी कुछ बच जाए या छूट गया हो तो plz यार तुम लोग कर देना आज मुझे जरूरी काम है। और boss पूछे या कुछ कहे तो तुम सब मिलकर सँभाल लेना।
मैं चली..?
मंजरी कहती है – क्या बात है अमरीन hot चाय पीकर hot hot होकर क़िस्से मिलने जा रही हो?☺️
और सारे कलिग़ मुझे छेड़ते है..अब मैं उनसे कहती भी तो क्या कहती उन्हें क्या पता मैं किसी से मिलने नही बल्कि सब्जी लेने जा रही हूं। ?
जैसे ही ऑफिस से निकली तो पानी गिरना स्टार्ट हो गया 6 बज गए थे पानी भी स्टार्ट हो गया और जल्दी जल्दी में मैं अपना रेनकोट लेना भूल गई।और इतनी बारिस में सब्जी वाले भी कहा बैठेंगे वो भी घर चले जायेंगे। अब आज तो मुझे दाल चावल ही खाकर सोना पड़ेगा यार । धत थोड़ी और जल्दी निकल जाती ऑफिस से तो सब्जी भी ले पाती ।
पास में एक दुकान थी तो वही रुक गई बारिश तेज हो रही थी मुझे भीगना नही था,आज ऑफिस में भी काम पूरा थका देने वाला था पूरा बदन टूट रहा था मुझे तो सिर्फ बिस्तर की याद सता रही थी। फिर क्या इधर उधर नजरें दौड़ाई फोन को बार बार चेक कर रही, घड़ी को देखे जा रही और पानी रुकने का वेट कर रही थी। और सोच रही थी की अगर ऑफिस से नही निकली होती तो कुछ काम ही हो जाता,इतने में मेरी नजर सामने वाली दुकान पर पड़ी वहां मेरे पति किसी और के साथ हाथो में हाथ डालकर खड़े थे। पहले मुझे यकीन नही हुआ अरे वो यहां क्या करने आएंगे और वो हो भी तो मुझे क्या मैं कौन सी अब उनकी पत्नी हूँ । हमारा तो 6 साल पहले तलाक हो गया है। पर क्या है ना जलन तो होती ही है,तो उन्हें टकाटक देखे जा रही थी वो स्ट्रीट लाइट के पास खड़े थे तो साफ नजर आ रहे थे उस लेडीस के माँग में सिंदूर था समझ गई उन्होंने शादी कर ली है,जिसके लिए उन्हीने मुझे छोड़ दिया वही कमीनी होगी और क्या इतना सब मेरे दिमाग मे चल रहा था।
पर मैं किसी से प्यार नही करती थी मैं तो सिर्फ आज भी अपने
X husband से प्यार करती थी। न ही हमारा कभी कोई चक्कर था ना कभी आगे होगा,अब तो सर दर्द भी होने लगा पर ये बारिश तो रुकने का नाम ही नही ले रही है। बारिश रुके तो मैं जल्द यहां से निकलू उन्हें देखकर सारी बीती बातें अब मेरे आँखों के फ्लैश की तरह सामने आने लगी।
प्यार तो कभी था ही नही हम दोनों के दरमियां बस हा ना में ही बात होती।अपने घर वालो के दबाव में आकर शादी तो कर ली पर कभी मुझे अपनी पत्नी का दर्जा दिया ही नही पर एक बात थी उनमे वादे के पक्के थे।
हा वादा आप सब सही समझ रहे है। वादा ही कहाँ हमने हमसे किया वादा नही बल्कि उस वादे में और उस दिल मे हम नही कोई ओर कुंडली मार बैठ गई थी । हम तो सब उनके घर मे ही थे बिल्कुल अकेले तन्हा न कोई साथी न कोई मंजिल न कोई पता न कोई अपना ठिकाना । ?
हमारे इस रिश्ते को वो कभी आगे ही नही बढ़ाये…
मुझे आज भी अच्छे से याद है जब वो मुझे मेरे पीहर ले जा रहे थे तो ऐसी ही तेज मूसलाधार बारिश हुआ हम भीग गए और सड़क के किनारे बस स्टॉप में जाकर रुक गए। वहां हम दोनों के अलावा कोई नही था तेज हवा और बदल बिजली कड़कने लगी मैं डर कर उनसे लिपट गई सीने से उनको पहली बार अपनी बाहों में भर लिया पर वो मुझे पीछे हटाकर अलग कर एक दम कड़े शब्दों में कहां आज के बाद कभी भी मेरे नजदीक मत आना मैं सिर्फ उसका हूं । मुझे बहुत जोर से गुस्सा आया और हम दोनों में बहस हो गई । क्या बहस हुई अब आप सब समझदार है।वही जब इतना प्यार करते थे तो मुझसे शादी क्योंकि और क्या मुझे सिर्फ घर की शोभा बढ़ाने और ताने मारने और तकलीफ देने के लिए ही लाये हो।
इस तरह हम दोनों में अब रोज-रोज झगड़े कहा सुनी होती रहती पर मैं उनसे बहुत प्यार करती थी मुझे पता नही सब जानकर भी उसने कैसे मुझे प्यार हो गया। उनकी एक आदत जो मुझे भा गई वो थी किसी से इतना सिद्दत से प्यार करना
अपने प्यार के प्रति loyal रहना,4 साल साथ रहकर भी मैं उनके दिल में जगा नही बना पाई और वो मुझे कभी भी सीधे मुँह बात भी नही करते मैं अक्सर कुछ न कुछ उनको रिझाने में लगी रहती। अक्सर उदास रहते रातो को छुपकर रोते फिर हमसे रहा नही गया और सोच समझकर हमने उसने तलाक की माँग की उसने मुझसे कहां नही हम अलग हुए तो घर वाले मुझे ही बुरा भला कहेंगे । तुम्हें मेरे साथ रहने में दिक्कत क्या है। मैंने कहा आप के साथ क्या बात कर रहे हो आप,तुम कभी मेरे साथ हो तुम तो अपनी उस ख्वाबो की मल्लिका में ही खोये रहते हो मैंने सोचा समय के साथ सब ठीक हो जाएगा। पर कुछ ठीक नही हुआ अब तो आलम ये है कि तुम अपनी खुशी जहां है आप उन्ही के साथ अपना जीवन आगे बढाओ मुझे इस नरक से आजाद कर दो और रही बात आप के घर वाले या मेरे घर वाले तो सारा कुछ मैं अपने ऊपर ले लुंगी पर अब आप के साथ एक छत के नीचे नही रह पाऊँगी।
और हमने तलाक ले लिए 3 साल हो गए है तलाक लेकर सारा कुछ अपने ऊपर लेकर उनको इस खोखले रिश्ते से आजाद कर दिया ।
यह सब सोच रही थी अपनी पुरानी लाइफ में वापस चली गई
और बारिश रुक चूंकि थी मुझे पता भी नही चला जब उस दुकान वाले भाई साहब में मुझे कहां excuse me mem
बारिश रुक गई है। तो मैं अपने ख्यालो की दुनिया से बाहर आई और देखा वो वहां से जा चुके थे। उस दुकान वाले भाई साहब को भी दुकान बंद करके घर जाना था तो उसने मुझसे ऐसा कहा। अब डारेक्ट तो नही कह सकता था हटो मुझे दुकान बंद करनी है आप और कहि जाकर खड़ी हो जाओ।
?☺️
जब दुकान वाले ने दुकान बंद कर रहे थे तभी ख्याल आया अब तो सब्जी वाले भी सभी चले गए होंगे यार अब मुझे सब्जी नही मिलेगी । तो मैंने उस दुकान से 12 ege ले लिए और अपने घर की तरफ निकल गए।
थोड़ी दूर ही आये की बारिश फिर स्टार्ट हो गई ।
–☺️☺️☺️☺️☺️-
यह सावन की बारिश थी और यादो में साजन था।
इन आँखों मे आँसू थे,और दर्द से भीगा दामन था
©® प्रेमयाद कुमार नवीन
जिला – महासमुन्द (छःग)