शाम कहते है
घरों को लौटते पंछी,तेरा पैगाम कहते हैं।
तेरे आने की आहट है,जिसे हम शाम कहते हैं।।
मुझे हर पल न जाने क्यूं,तेरा एहसास रहता है।
यही जज्बात है,जिसका मोहब्बत नाम कहते हैं।।
तेरी चाहत मेरी हसरत, मेरी मंजिल मेरा रस्ता।
कोई पूछे कभी हमसे,यही बस काम कहते हैं।।
तेरी इन झील सी आंखों में,गर हम डूब भी जाएं।
इसे शायर जुबां, अल्फ़ाज़ में ईनाम कहते हैं।।
तुम्हीं हस्ती, तुम्हीं कश्ती तुम्हीं मेरा किनारा हो।
तुम्हीं आग़ाज़ हो मेरा, तुम्हें अंजाम कहते हैं।।
मुकम्मल जिंदगी मेरी,मुकम्मल ये सफर होगा।
उसे ग़र नाम तुम दे दो, जिसे बेनाम कहते हैं।।
तिश्नगी बस तेरी दिल में,तसव्वुर बस रहे तेरा।
मुक्करर ये सजा कर दो अगर इल्जाम कहते हैं।।
सुनील गुप्ता ‘धीर’