शहादत
लघु कथा ….. शहादत
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हां! वह बहुत डरपोक था, लड़ाई के नाम से वो अंदर तक कांप ही तो जाता था। धमाके की आवाज सुनकर तो जैसे उसका खून ही सुख जाता, मगर आज अचानक सब उसका यह रूप देखकर हैरान थे आज वह चीख- चीख कर कह रहा था कि …..”मारो मुझे गोली, काट डालो मुझे दे दीजिए मुझको फांसी ,मगर आज मैं डरने और झूकने वाला नहीं हूं ।”
डरपोक नाम से मशहूर राजू आज शेर कि तरह भरी पंचायत में दहाड़ रहा था तो उसका कारण केवल एक ही था कि …..उसने आज गांव के सरपंच ठाकुर भानु प्रताप सिंह के लड़के को बुरी तरह से पीटा था और कारण यह था कि उसने एक भीख मांगती हुई गरीब महिला की इज्जत उससे बचाई थी ।
कहने वाले तो ये भी कह रहे थे कि एक भिखारिन के लिए सरपंच के बेटे को पीटने का क्या मतलब था। मगर वहीं कुछ लोग यह भी कह रहे थे इस गांव में कोई है जो अब दबे कुचले लोगों की आवाज बन कर खड़ा हो सकता है। भरी पंचायत में जहां राजू को मारने के लिए लोग बंदूक, लाठी और भाले लेकर खड़े थे तो वहीं दूसरी तरफ आज पूरा गांव उसके साथ खड़ा था, और कह रहा था कि यदि आज पंचायत में न्याय सही नहीं हुआ फैसला एकतरफा हुआ तो आज हम सब राजू के साथ अपनी शहादत देने के लिए तैयार हैं। राजू की बहादुरी ने आज जैसे एक भिखारिन की इज्जत के माध्यम से ही सही गांव को एक नई आवाज और नया जोश भरने काम कर दिया था।।
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प्रस्तुत कहानी के मूल रचनाकार…..
डॉ.नरेश कुमार “सागर”
गांव -मुरादपुर, सागर कॉलोनी, गढ़ रोड ,नई मंडी, हापुड,उत्तर प्रदेश
प्रमाणित किया जाता है कि मूल रचना लेखक की अप्रकाशित रचनाएं हैं