शर्मसार….
शर्मसार….
ख़ुदा की ये कायनात
शर्मसार हो जाती है जब
कोई बहन,बहु, बेटी
हैवानियत की शिकार हो जाती है
निशा का आँचल
दागदार हो जाता है
जब
हवस के भूखे भेड़िये
किसी मासूम की अस्मत को
सरे आम तार तार कर देते हैं
और ज़िंदगी भर के लिए
उसकी आँखों में अश्कों का
सैलाब भर देते हैं
हर रोज
हर अख़बार
चीख चीख कर
बार बार
बालात्कार बलात्कार बालात्कार
की खबर देती है
प्रथम पृष्ठ से अंतिम पृष्ठ तक
समाज में पल पल होते
ऐसे शर्मनाक काण्ड
बड़ी बड़ी हेड लाईनों में
सचित्र दर्शाए जाते हैं
लेकिन अफ़सोस
इन घटनाओं से
समाचार पत्र तो बिक जाते हैं
टी वी चैनलों की
टी आर पी भी बढ़ जाती है
मगर
अबलाओं के बालात्कार
नहीं रुक पाते हैं
अगर
ऐसी शर्मनाक घटनाओं विरुद्ध ..
समाज का हर वर्ग
सचेत न हुआ तो
ऐसी घटनाएँ
रोज होंगी , हर बार होंगी
और
न जाने
कितनी बिंदियाँ
शर्मसार होंगी
सुशील सरना/