शरीर में सात चक्र, उनसे संबंधित रोग और “योग”
शरीर में सात चक्र, उनसे संबंधित रोग और “योग” __
नित्य योग करें खुद से जुड़ें, योग है सुंदर अभ्यास
एकाकार हो परमशक्ति से, देता अद्भुत अहसास
रंगमहल के दस दरवाजे,सात चक्र से सजा महल
योगध्यान से जगाओ चेतना,जीवन हो जाए सफल
प्रथम चक्र मूलाधार,है कुंडलिनी का मुख्य आधार
खिले चार कमलदल में संचित, अवचेतन का सार
“लं” बीजमंत्र! ध्यान,योग, साधना से जागृत होकर
ऊर्जा चढ़ती ऊपर,ज्यों कुंडली में सर्प दे फुंफकार
दूसरा चक्र स्वाधिष्ठान,भौतिक/दांपत्य सृजन कर्ता
“वं” मंत्र!धन वैभव आत्मविश्वास,खुशियों से भरता
तीसरा मणिपुरचक्र निकट नाभि,ज्ञान अनंत जगाए
“रं” मंत्र!नेतृत्व,ज्ञान,तर्क, दृढ़ आत्मविश्वास बढ़ाए
चौथा हृदयचक्र मध्य छाती के,करुणा प्रेम सिखाए
“यं” मंत्र!चंचल मन शांत हो,अध्यात्म ओर ले जाए
पांचवा विशुद्धिचक्र है नीलवर्ण, मध्य कंठ स्थान
सोलह पंखुड़ियां कमलदल,करे निर्भय यह जान
“हं” मंत्र! से सिद्ध हो,अष्ट सिद्धि नवनिधि का ज्ञान
है शिवशक्ति/ वाग्देवी मां सरस्वती का उद्गम स्थान
छठा आज्ञाचक्र,दो कमलदल मध्य भृकुटी स्थान
दूरदृष्टि हो जागृत,शिव का तीसरा नेत्र कहते पुराण
“ॐ”मंत्र! इड़ा,पिंगला, सुषुम्ना मिल देती अंतर्ज्ञान
होता बोध “मैं कौन हूं” का,त्रिवेणी संगम सा स्थान
सातवां चक्र सहस्त्रार, योगी कहते हैं ईश्वर का द्वार
खिले सहस्त्र कमलदल सा,अपार ऊर्जा का भंडार
“ॐ” मंत्र! विशुद्ध प्रकाश,मिलन हो शिवशक्ति का
पूर्ण साधना,परम समाधि,खुल जाए द्वार मोक्ष का
बचपन हो या पचपन,योग को जीवन में अपनाओ
आत्मा जुड़े परमात्मा से, नहीं अंत समय पछताओ
समय रहते जागो,समय का घोड़ा भागे बिना लगाम
योग बदले जीवन,मंदिर हो जाए सात चक्रों से सजा मकान।
__ मनु वाशिष्ठ