“शमशान” एक हकीकत
“शमशान” एक हकीकत
जब एक लाश ले कंधे पे
पहुंचे जब शमशान में
देखा, दूजी अधजली है
तीसरी की राख ठंडी पड़ चुकी है
जाते ही लग गयें तैयारियों में
उस इंसानी जिस्म को फूँकने की
जो कल तक अपना था खास था
अनमने से दुखी मन से जुटे सब
लकड़ियां सजाने को लाश जलाने को
अर्थी को चिता पर रखते
लकडियों से उस ढांचे को ढांकते सब
जिसमें कोई प्राण नहीं है अब
बदबू से बचाने को
सामग्री–घी–चंदन डालते
कुछ के आंखों में आंसू
कुछ गंभीर कुछ गमगीन थे
कल तक जो जिंदा था जिंदादिल था
आज लाश बना अर्थी पर लेटा है
संग ढेरों जिंदा लाश से बन गए है
अवसाद मोह माया से जकड़े हुए
लक्ष्य कुछ भी हो मंजिल है शमशान की
जब तक जीयें जीये शान से
करें मुकाबला विपत्तियों से
चुनौतियों को स्वीकार करें
मार्ग सदैव धरे रहें सत्य का सम्मान का
क्योंकि जल कर मिट जाना है
बचेगी स्मृति शेष सिर्फ व्यवहार का
संग जाएगी लेखा जोखा कर्म का कुकर्म का
लक्ष्य कुछ भी हो मंजिल है शमशान का