शब्द-स्वर की स्वामिनी
बोलो जय माता की!!
घनाक्षरी छंद
शब्द-स्वर की स्वामिनी,
हे माता हंसवाहिनी-
भाव में प्रवाह कर,
छंद में विराजिए।
सुमातु हे सुहासिनी
माँ अम्ब वीणावादिनी
कंठ को सुकंठ कर,
कंठ मेंं विराजिए।
सुप्त हुई चेतना है,
वेगमयी वेदना है।
अंग -अंग हैं शिथिल,
अंग में विराजिए।
आरती सजाऊं नित्य,
हो न कोई नीच कृत्य,
आओ मेरी मातु मेरे
संग में विराजिए।