शक्ति का आधार हो तुम
शक्ति का आधार हो तुम
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राष्ट्र की नित बढ़ रही शुभ शक्ति का आधार हो तुम।
दुश्मनों को भस्म कर दें जल रहे अंगार हो तुम।
राम के प्रिय भक्त हैं जब धर्म-भू सर्वस्व अपना।
पाप की लंका जला दें रूद्र के अवतार हो तुम।
शौर्य का सागर उमड़ता शत्रु अब टिकने न पाए।
घोषणा कर दें विजय की हर समय तैयार हो तुम।
पांव शत्रु के उखड़ते कांपते थर थर हमेशा।
रक्त की नदियां बहा दें अस्त्र की बौछार हो तुम।
गूँजती रण भेरियों सँग गीत गाते हैं विजय के।
भेदती नभ राम के कोदंड की टंकार हो तुम।
छल कपट से दूर रहकर कार्य सेवा में रमा मन।
हर दुखी इन्सान के हित स्नेह के आगार हो तुम।
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-सुरेन्द्रपाल वैद्य, ०७/०८/२०२१