शंका ही भूत
इस पाठ मे एक ऐसे गांव का वर्णन है कि इस गांव के वासी भूतो मे विश्वास रखते थे ।विश्वास करे या न करे दिन -प्रतिदिन घटनाए जो होती ।
एक गांव था जिसका नाम था बदलापुर । इस गांव की स्थिति ऐसी थी कि इसे कोई देखे तो डर जाए, ढेर सारे खण्डहर, पेङ जिसमे पीपल, बरगद, पाकङ, गुल्लर, पलाश, आम शिशम आदि मुख्य थे । इस गांव के लोगो का मुख्य व्यवसाय कृषि एवं पशुपालन था ।यहाँ के वासी शिकार करने के भी शौकीन थे ।जो पक्षियो को मारा करते थे और उसे आग मे भूजकर (आग मे थोड़ा बहुत पक जाने पर ) ही खा जाया करते थे ।ये लोग गुलेल का प्रयोग कर पक्षियो को धराशायी कर देते क्या निशाना था उस गांव के वासियो का ? कहा जाता है जिसके अंदर जैसे विचार आते है, वह उसी रूप मे ढल जाता है ।बस यही हाल था इस ग्रामवासियो का दिन तो बहुत ही आनंदमय बीत जाता किंतु रात के आगमन होते ही लोग डर कर घर से बाहर न निकलते, उसी मे सारी रात दुबके रहते । यदि किसी को शौच भी लग जाए तो वह बाहर न निकलता डर के शांए से वही पर निपट लेता । रात के लगभग निशीथ का समय, समय था 10:30 Pm बजे मैने देखा एक आदमी घर से तलवार लेकर निकला । अब आप सोच रहे होंगे कहां के लिए निकला तो सुनिए । उस समय आम के पेङो पर फल लगे थे, आम पकने के करीब थे । वह आदमी हाथ मे नंगी तलवार लेकर अपने आमो के बगीचो की रखवाली करने को निकला और वो हाथ मे तलवार इस उद्देश्य से लिया था कि यदि कोई भूत -प्रेत आ मिले तो उससे डटकर निपटने के लिए । वह आदमी आम के बगीचे मे जाकर अपने बागो की भलीभांति देखा फिर अपने खाट पर जा बैठा और अपनी मशाल जलाकर इधर-उधर देखा, फिर उसके बाद रात के बारह बजे मध्यरात्रि का समय उसकी पलके झपकने लगी । वह आदमी इसलिए नही सो रहा था । क्योकि उसको आम की चिंता तो कम किंतु अपनी जान की परवाह ज्यादा कर रहा था । ऐसा समय आ ही गया जब वह पूर्ण रूप से सो गया । उसके मन मे केवल एक ही डर वो था भूतो का डर वह आदमी स्वप्न देख रहा था कि एक भूत मेरे पास आया है और मुझे अपने नुकीले नाखूनो से मार रहा है । तभी वह आदमी अपने ही नाखून से ही अपने शरीर पर मारने लगा । मारते -मारते उसके शरीर से रक्त की गंगा बहने लगी, उसकी पूरी खाट खून से पूरा लहुलुहान हो गयी । उसके क्या पता कि वह स्वयं के ही पैर पर कुल्हाड़ी मार रहा है, भूतो को नही । कुछ समयोपरांत भोर हुई चारो ओर पक्षियो का कलरव सुनायी देने लगा ।गांव वाले अपने घरो से निकलने लगे । वे घर से एसे निकलते थे मानो कई सालो बाद वो जेल से छूट रहे हो । वह आदमी पहले उठा और पहले तो अपने बागो को देखा ।फिर अपने तन को देखा तो उसके होशोहवास उङ गए,वह डरने लगा । अरे ! ये मेरे शरीर पर इतनी चोटे कैसे लगी और उसको विश्वास हो गया कि भूत आया था और मुझे मारा और मेरे आमो को चुरा ले गया है । सोचते-सोचते ही वह चिल्लाने लगा मै लूट गया हाय मै अब नही बचूंगा ऐसा कहकर वो रोने लगा और उसी क्षण उसको हृदयाघात हुआ और वह मर गया । एक आदमी उसकी चिल्लाहट को सुन उसके समीप आया तो उसने उसने देखा क्या कि अरे ! ये खून कैसा ? और वो जाकर उस आदमी को झकझोरा क्या हुआ भाई ये कैसे हो गया । इतने पर एक आदमी भाग्यवश वहां आ गया और लगा चिल्लाने रामखेलावन ने रामु भईया को मार डाला । रामखेलावन यह सुन हतप्रभ हो गया ।उसने कहा मैने कुछ नही किया भाई कुछ नही किया । मै तो इनकी चिल्लाहट को सुन इनके तरफ सरपट दौङा और मैने इनको इस हाल मे देखा । चुप हत्यारे रामु भईया की हत्या कर घङियाली आंसू बहाकर बहाना मारता है, अरे ! कीड़े पड़ेंगे कीड़े तुम चैन से नही रहोगे ।यह सुन सारे गांव के लोग आए । रामु की पत्नी विधवा हो चुकी थी वही पर चार पुत्र अनाथ हो गए । रामू की पत्नी और सभी पुत्र लगे करूणा मे रोने, हाय रे मोरे माई हाय रे मोरे बप्पा एसे करूण आवाज सुन सारे गांव वाले भी सिसकिया भरने लगे और रामखेलावन को घृणा की दृष्टि से देखने लगे । रामु सबके नजरो मे गिर गया था । राम खेलावन को हत्या के जुर्म मे पुलिस पकड़ कर ले गयी ।मुकदमा हुआ रामखेलावन से पूछा गया कि तुम्हारे पास कोई गवाह है जो यह सिद्ध कर सके कि तुम बेगुनाह हो, निर्दोष हो वो बोला नही माई-बाप मै तो उस आदमी की चिल्लाहट सुन उसके पास गया । मुख्यन्यायाधीश ने कहा उस आदमी को कटघरे मे बुलाया जाय जो इसको वहां पर सबसे पहले देखा था । वह कटघरे मे आया और कहा हां माई-बाप यही वह आदमी है जिसको मैने उनको खाट पर उलटते -पलटते देखा था ।तब मैने देखा रामु भईया खून से लथपथ थे, और उनके शरीर पर ढेर सारे घाव थे । ऐसा लग रहा था कि किसी ने इनके चमङियो को छीलकर बेरहमी से मारा हो । इतने पर पर ही मुख्यन्यायाधीश बोले तमाम सबूतो और गवाहो के मद्देनजर अदालत इस मोङ पर पहुंची है कि रामखेलावन को रामु की हत्या के जुर्म मे धारा 302 के तहत 25 साल की सजा सुनाती है ।और वह आदमी यानि की रामु आज भी सबूत के अभाव मे कारागार मे जाकर पत्थर तोङ रहा है और अपने भाग्य पर लगा कोसने हे भगवान् मैने तेरा क्या बिगाङा था जो तू मुझे ऐसा कठोर दण्ड दे रहा है और उसके दिमाग मे ख्याल आया कि क्या इसी को शनि की साढ़ेसाती कहते है । जब अपने दिमाग पर जोर डाला तो उसके एक लड़के को उसके ऊपर झूठा आरोप लगाकर फंसाने का ख्याल आया जो आज भी कारागार मे है, और उसके माता-पिता का समाज मे मान सम्मान घट गया है, यह सोच उसके यह बात आई जैसी करनी वैसी भरनी -अपनी करनी पार उतरनी । ध्यान से सुनो इस कहानी को यही स्थिति उस गांव की थी जिसका मै वर्णन कर रहा हूं ।लोग दिनभर तो शानशौकत से रहते तो वही रात मे डर के मारे चूहो की तरह बिल मे घुस जाते । फिर एक रात की बात एक बाईस साल का नौजवान बाहर शौच करने के लिए निकला । उस समय बहुत ही तेज हवाएं चल रही थी और अमावस्या की रात थी ।तभी वह लङका शौचोपरांत अपने घर की तरफ न जाकर लगा दूसरी ओर भागने ।वो अपने पैरो मे चप्पल पहना था जो उसके पैर से बङा था, क्योकि वह अपने बङे भाई का चप्पल पहन रखा था । डर के मारे वो अपनी पुरी कसर लगाकर लगा अंधाधुंध भागने वह अपने चप्पल की फट -फट की आवाज सुन ऐसा आभास कर रहा था कि कोई भूत मेरा पीछा कर रहा है । क्योकि ध्वनि के अपवर्तन के कारण ध्वनि दिन की अपेक्षा रात मे दूर तक सुनाई देती है बस और क्या था इसी तरह उसके चप्पल की फटफटाहट सुनाती रही उसका चप्पल करता एक बार फट तो ऐसा लगता कि ये आवाज बहुत तेजी से दो बार गूंजती जिसके कारण वो कोई मेरा पीछा कर रहा है भूत के साए से वो अंधाधुंध दौङते ही खण्डहर के एक कुंए मे जा गिरा और उसी कुंए मे डूबकर उसकी मौत हो गई । सुबह होते ही उस लड़के की खोजाई होने लगी की वह लङका कहां है तभी एक आदमी ने चिल्लाते हुए कहा कि तुम्हारा लङका तो पास के कुंए मे गिरकर मर गया । यह सुन सुरेश के माता -पिता और भाई गश्ती खाकर गिर गए ऐसा हो भी क्यो न नौजवान लङका जो था । लोग कुंए से निकालकर ले जाकर उसकी अंत्येष्टि कर दिए । कुछ लोग कहने लगे कि अरे ! सुनो लगता है रामु भूत बन गया है ।जिसकी आत्मा इधर-उधर भटक रही है । और वही सुरेश को कुंए मे मारकर फेंक दिया होगा । रामु अपने समय मे कम चालाक था । एक बार मेरी और उसकी कुश्ती चल रही थी । मै उसकी गर्दन पकड़कर गिराने की कोशिश करता वो क्या किया मेरे पैर पर ही दे मारा और मै तुरंत ही धराशायी हो गया और वह जीत गया मै हार गया । उससे मैने पूछा किया तूने मेरे पैर पर क्यो मारा ? उसने कहा तू रहा पगले का पगला तू पेङ की शाखा कितना भी काट पेङ थोड़े ही गिर जाएगा । जब तू उसके तने पर प्रहार करता है तो वह गिर जाता है क्योंकि वह उस पर टिका रहता है । बस यही सोच मैने तेरे पैर पर ही दे मारा ,और तू जा गिरा । तब मैने बोला यह तो कमाल है । तू तो बङा ही समझदार निकला चोर समझा था तुझको तू थानेदार निकला । फिर ऐसे ही चालाकी लगता है रामु ने लगाया है और उसे मारकर कुंए मे फेंक दिया कोई कोई शंका भी नही करेगा लोग सोचेंगे आत्महत्या कर लिया होगा उस लङके ने । भूतो के डर से उस गांव मे करीब पांच आदमी मर गए । उनको कोई भूत नही मारता था। बल्कि वह अपने पैर पर स्वयं कुल्हाड़ी मार मर जाते । रात मे पेङ पौधो और घास का आकार और छाया भी किसी बैठे हुए भूत सा प्रतीत होती थी । यानी कि सार यही है “यथा सोच -तथा परिणाम ।
?? कहानीकार :- Rj Anand Prajapati ??