शंकरलाल द्विवेदी द्वारा लिखित एक मुक्तक काव्य
शंकरलाल द्विवेदी (21 जुलाई 1941 – 27 जुलाई 1981), हिन्दी एवं ब्रजभाषा साहित्य के मूर्धन्य कवि व साहित्यकार थे। काव्य-मंचों एवं साथी कवियों के मध्य वे शंकर द्विवेदी उपाख्य से प्रचलित व प्रतिष्ठित रहे। आकर्षक व्यक्तित्व के धनी श्री द्विवेदी, एक उत्कृष्ट कविर्मनीषी होने के साथ-साथ उच्च कोटि के शिक्षाविद भी थे। समकालीन कवियों के मध्य उन्हें कवि सम्मेलनों में ख़ासी लोकप्रियता प्राप्त थी। अपनी ओजस्वी काव्य-प्रस्तुतियों के कारण कवि सम्मेलनों के श्रोता-वर्ग में भी वे अत्यन्त लोकप्रिय थे। श्री द्विवेदी आग और राग दोनों स्वरों के सर्जक रहे हैं। वीर रस में काव्य-दक्ष श्री द्विवेदी को शृंगार रस में भी दक्षता हासिल थी। संयोग तथा वियोग दोनों ही श्रृंगारिक पक्षों पर उनकी लेखनी समानाधिकृत रूप से समृद्ध थी। उनका गीत-माधुर्य बरबस ही श्रोताओं को सम्मोहन-पाश में बाँध लेता था।।