वक़्त था खुद को आजमाने का
वक़्त था खुद को आजमाने का
वादा करना था भूल जाने का
हम ये समझे उन्हें मुहब्बत है
उनका था शौक गुनगुनाने का
मानते जब हमें हो तुम अपना
फिर सबब क्या यूँ हिचकिचाने का
खाइयाँ और भी हुईं गहरी
फायदा क्या हुआ निभाने का
दिखती बेचैनियाँ हैं आँखों मे
कर न नाटक तू मुस्कुराने का
हमको रोका नहीं किसी ने भी
चाहिए पर बहाना आने का
‘अर्चना’ बात अपनी कहनी थी
था इरादा न दिल दुखाने का
02-01-2018
डॉ अर्चना गुप्ता