वक़्त उल्टे सवाल करता है
उसका हंसना निहाल करता है
उसका रोना मुहाल करता है
जब मुक़द्दर वबाल करता है
वक़्त उल्टे सवाल करता है
जिसको जाना था वो चला ही गया
क्यूँ तू इतना मलाल करता है
सब्र कर वक़्त को गुज़रने दे
खामखां क्यूँ ख़याल करता है
इक नज़र देख कर चुरा ले दिल
वो तो जादू कमाल करता है
हो समझदार तो समझ लो ये
वक़्त तिरछी भी चाल करता है
ये अलग बात कि करे गुस्सा
काम पर बेमिसाल करता है
शाम होते चढ़ा ही वो लेता
रात को फ़िर धमाल करता है
जो भी ‘आनन्द’ हैं बुरे जग में
रब बुरा उनका हाल करता है
– डॉ आनन्द किशोर