व्यवहार……….
व्यवहार……….
निरन्तर गति को लय दे चल रे प्राणी
बिन लय के शशक नहीं विजय पाते है
बाहुल्य के प्रभाव में दुर्जन हुंकार भरे
सज्जन तो व्यवहार से पहचाने जाते है
बूँद – बूँद से तृप्त हो जाते है पुष्प वृक्ष
प्रबल वेग धारा से किनारे बह जाते है
संयम से काम लेना पहचान ज्ञानी की
उग्र स्वभाव धारण कर शैतान कहलाते है
मंद फुहारों से ही बनता वर्षा का आकर्षण
मेघ फटने से तो शिला भी बह हो जाते है !!
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डी. के. निवातियाँ ——————-@