व्यथा
अपने घर के अंदर
शराबियों के झुंड को देखकर,
उनके बीच अनर्गल बहस
और गाली – गलौच को सुनकर ।
शहर से छुट्टी पर आया हुआ एक माँ के लाल
की व्यथा कौन जाने ?
परेशान होकर माँ से
शिकायत करने लगा ।
कि,
माँ इनको बोलो कि,
यहां से चले जाएं ।
इनमे कोई सभ्यता नाम की,
चीज ही नही है ।
बाहर निकालो इन्हें,
नही तो मैं भगाऊँ क्या ?
सुनकर माँ बेटे को रोककर बोली,
बेटे बुरा तो मुझे भी लगता है पर,
मेरी मजबूरी है ।
ये तू जो शहर में रहकर
पढ़ाई कर रहा है ना
इन्ही लोगो को दारू बेचकर
तेरे कॉलेज की फीस
दे रही हूं ।
बस तेरे पढ़ाई में कोई
बाधा न आये ।
इसलिए मुझे ये सब सहन करना पड़ता है ।
अब इस बालक की “व्यथा” बस बालक
ही जाने ।
गोविन्द उईके