व्यथा एक नव विवाहिता की
बहुत रोती हैं ये अँखियाँ,
बहुत रोती हैं ये अँखियाँ।
छोटी थी तब मां का साथ पाने को रोती थीं ये अँखियाँ।
अब बड़ी हुई तो माँ का साथ छोड़ने पर रोती हैं ये अँखियाँ।
कैसे समझाएं इन्हें कोई
बड़ी नासमझ हैं ये अँखियाँ।
अगर कुछ कहना चाहूं तो
बरस पड़ती हैं ये अँखियाँ।
रंजना माथुर दिनांक 17/06/17
मेरी स्व रचित व मौलिक रचना
©