[ व्यंग्य ] ☆ >> मूड <<☆
ऊँह ! एक निश्वास छोड़ा और कलम तथा पैड को रखकर चारपाई पर लेट गया । सोचा था कि अखबारी चौखट में अपना भी कुछ सिक्का जम जाय पर मूड के रोग से पीड़ित आज भी कुछ न लिख सका । इधर कई दिनों से जब भी कुछ लिखने बैठता , कलम दो – चार लाइन चलकर रूक जाती और लाख कोशिश करने के बावजूद भी कमबख्त आगे बढ़ने का नाम न लेती । आप शायद सोचते होंगे – ‘ कहीं श्रीमान जी का ” स्क्रू ” ढीला तो नहीं हो गया है ?’ मैं दावे के साथ कह सकता हूँ कि यह एक ऐसा रोग है बल्कि यों कहिये कि बला है जो सब रोगो को मात कर देता है ।
आप कोई भी कार्य करने जा रहे हो , ,यदि मूड ठीक नहीं है तो विश्वास कीजिए लाख कोशिश करने के बावजूद भी वह कार्य नहीं कर सकते ।
क्या बताऊँ ? जब – जब पढ़ने बैठता हूँ , मूड ही नहीं जम पाता , परीक्षा भी साली नजदीक है । यदि कोई आफिसर महोदय हुए , मूड में नही है तो झल्लाकर बोलेगे – ” मैंने तुमसे कई बार कह दिया कि बाद में आना , पता नहीं क्यों मूड खराब करने पर तुले हुए हो ? ”
एक बार कार्यवश मैं थाने पर गया था । कोतवाल साहब से गपशप होता रहता था । थाने पर पहुंचा तो देखा ” सभी पुलिस कर्मी सहमे – सहमे डरे से खड़े है । कोतवाल साहब तैश में सभी को डांट – फटकार रहे थे । ” जब सभी पुलिस कर्मी चले गए तो मैंने कोतवाल साहब से पूछा – ” क्या कोई मुजरिम हिरासत से भाग गया है ? ” वे बोले – ” जायसवाल जी ! मुजरिम साले की हिम्मत जो मेरे रहते हिरासत से भाग जाए ! दरअसल आज सुबह से ही पता नही क्यों मूड उखड़ा हुआ है ? थाने पर पहुंचा तो देखा यहां गपशप चल रही है । बस मूड औऱ खराब हो गया । ” मुझे बाद में पता चला कि कोतवाल साहब का पत्नी से सबेरे – सबेरे कुछ कहासुनी हो गई थी ।
मैं बी. ए. में पढ़ रहा था । अध्यापक थे – राय साहब ! बड़े मनोविनोद प्रिय थे । एक दिन क्लास में आए । बमुश्किल पाँच मिनट पढांए होगें , बोले – ” बच्चों आज मूड ठीक नहीं है ,जनरल नॉलेज के बारे मे आप लोग पूछिये । ” मैं खड़ा हो गया और बोला – ” सर ! आज मूड के बारे मे ही बतायें । मूड की परिभाषा क्या है ? और मूड का हिदी शब्द क्या है ? ” वे बोले – ” यह प्रश्न पूछकर मेरा बना – बनाया मूड खराब कर दिया । भला मूड की भी कोई परिभाषा है ? मूड का हिदी में तो क्या विश्व के किसी भी भाषा में मूड शब्द का अनुवाद नही हुआ है । मूड की न तो कोई परिभाषा है और न ही किसी भाषा में इसका अनुवाद हुआ है । यहां तक कि मूड की उत्पत्ति कब हुई ? इसकी भी स्पष्ट व्याख्या विश्व की किसी भी पुस्तक में नही है ।”
मूड की बीमारी को किसी भी श्रेणी में नहीं रखा जा सकता है । मूड की कोई दवा नहीं बनी है । मूड के बनने या बिगड़ने का न तो कोई समय है ,न कोई ऋतु । बिगड़ा मूड कब ठीक होगा? इसका भी कोई समय नही है । मूड कब बिगड़ जाय , इस पर विश्व के वैज्ञानिक कोई जवाब, कोई शोध – अनुसंधान आज तक नहीं दे सके । जबकि इस रोग से ऐसे विशेष व्यक्ति हर पल, हर दिन, हर महीने, हर वर्ष, जीवन पर्यन्त तक पीड़ित रहते हैं । यह न मनुष्य प्रदत्त है, न प्रकृति प्रदत्त है ,न ईश्वर प्रदत्त है । यहां तक कि यह सृष्टि प्रदत्त भी नहीं है ।
मूड ठीक करने के लिए अंग्रेजों ने सोमरस की तर्ज पर एक पेय पदार्थ का फैलाव विश्व में किया जरूर है, पर इसके पीने से मूड कभी ठीक हो जाता है तो कभी – कभी अधिक खराब भी हो जाता है । इस पेय पदार्थ को गांव की बोली में ‘ चाय ‘ और सभ्य समाज में ‘ टी ‘ कहा जाता है । किसान से लेकर उद्योगपति तक, मजदूर से लेकर आफिसर तक सभी लोग मूड खराब होने पर तुरंत इसकी डिमांड करते हैं । मूड खराब हुआ , तुरंत मुख से निकला – ” यार मूड खराब है, जरा एक कप कड़कदार चाय पिलाओ ।” जब तक चाय नही आती है , तब तक चाय पीने की कल्पना में , मूड ठीक होने के लिए कुछ बेराग सुर मुंह से निकलता रहता हैं । चाय आई , पहली चुस्की लगाई , झुंझलाहट के साथ कप को मेज पर पटककर बड़बड़ा उठे – ” कैसी चाय लाई ? मूड खराब हो गया । कहा था कड़कदार , लाए गरम-गरम मीठा शरबत !” अब आप ही बताइए यह पेय पदार्थ भी कितनी बुरी तरह से अंग्रेजी दवा की तरह बजाय फायदा के रिऐक्शन कर गया । मूड ठीक होने के बजाय और खराब हो गया ।
महिला वर्ग में यह रोग उन महिलाओं मे अधिक होता है जो ” श्रीमती जी ” की उपाधि से बिभूषित हैं । जिन ” श्रीमती जी ” के
” श्रीमान जी ” सर्विस मे है , उनमें ये लक्षण सर्वाधिक प्रगट होते हैं । ऐसी महिलाओं के मूड बिगड़ने पर कड़कदार चाय एकदम बेअसर साबित होती है । ” श्रीमती जी ” के मूड बिगड़ने पर ‘ श्रीमान जी ‘ अगर भूलवश कह बैठे – ” प्रिये ! तुम्हारा मूड खराब है , एक कप कड़कदार चाय पी लो ” तो तय समझिए कि वे भड़क जाएगी । उनका मूड तभी ठीक होगा जब ‘ श्रीमान जी ‘ वेतन के साथ
” श्रीमतीजी के लिए उनकी मनपसंद की साड़ी या पिछले महीने की फरमाइश का सामान लेकर घर आते हैं । अगर श्रीमान जी खाली हाथ केवल वेतन ही लेकर घर पहुंच गए तब तो ‘ श्रीमती जी ‘ का पारा सातवें आसमान पर तुरंत चढ़ जाएगा । यह पारा तभी उतरेगा , मूड तभी ठीक होगा जब ‘ श्रीमान जी ‘ याचनापूर्ण स्वर में कहेगें – ”
प्रिये ! वेतन मिलने मे देरी हो गई , इसलिये तुम्हारी प्रिय वस्तु न ला सका । ऐसा करो- जल्दी फ्रेश हो लो । आज तुम्हे शापिंग कराऊंगा , अच्छे होटल मे डिनर लेगें , सिनेमा भी देखेंगे । जैसे ही ये याचनापूर्ण शब्द ‘ श्रीमती जी ‘ के कानों में पड़े , मूड तुरंत ठीक हुआ और सब गृहकार्य छोड़कर मेकअप में जुट जाएगीं ।
समाचार पत्र – पत्रिकाओं के संपादकों पर भी मूड का विशेष प्रभाव पड़ता है । अगर संपादक जी का मूड ठीक है तो ‘ मरियल लेखक ‘ का ‘ सड़ियल रचना ‘ छप जायेगा । अगर मूड गड़बड़ है तो ” दड़ियल लेखक ” की धाँसू रचना रद्दी की टोकरी में नजर आएंगा । यह लेख कहां पहुंचेगा , यह तो संपादक जी के मूड पर निर्भर है । इसमें न तो मेरा वश चलेगा , न किसी का , वस मूड का ही वश चलेगा क्योंकि –
मूड विना सब ब्यर्थ है ,मूड बिना जंग सून ;
मूड बनै पर सब मिलै , मोती-मानुस – मून ।