व्यंग्य कविता, प्रथम योग्यता
प्रथम योग्यता जाति,
कभी भुलाई नहीं जाती
कर्म सिद्धांत को ठिकाने लगाती
व्यर्थ के छल धरती,
किसी को हीन.
श्रेष्ठ सम्मान बढाती.
अनपढ़ को भी द्विवेदी त्रिवेदी, चतुर्वेदी
नहीं तो आत्मज्ञानी कह अव्वल रखती
है कौन शैली सिद्धांत,
जो ये तकरार बढाती.