वो हौसलों से ही बढ़ाएगी मुझे
पल- पल बहुत यूं याद आएगी मुझे
ये आग दिल की यूं जलाएगी मुझे
खुद ज़िंदगी खुद से मिलाएगी मुझे
खुद दूर जाके पास लाएगी मुझे
मैं खो गया हूँ अब न जाने किस जहाँ
क्या ज़िंदगी भी ढूंढ लाएगी मुझे
अब ले रही है इम्तिहाँ ये ज़िंदगी
वो हौसलों से ही बढ़ाएगी मुझे
है इल्म की दौलत जो मेंरे पास में
ये आसमाँ में अब उड़ाएगी मुझे
सब साथ रहते है वतन के अपने हम
कैसे सियासत अब डराएगी मुझे
है रास्ते में योँ बहुत उलझन भरी
मंज़िल की चाहत ही जगाएगी मुझे
-आकिब जावेद